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"मैं तो बस्ती ढूढ़ रहा था मुझको मिले शमशान / रामप्रकाश 'बेखुद' लखनवी" के अवतरणों में अंतर

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मैं तो बस्ती ढूढ़ रहा था मुझको मिले शमशान बहुत
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मेरे मालिक तेरे जहां में खेत है कम खलियान बहुत  
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मेरे मालिक तेरे जहाँ में खेत हैं कम खलिहान बहुत  
  
 
हुस्न की दौलत वाले मुझको तेरी इक मुस्कान बहुत
 
हुस्न की दौलत वाले मुझको तेरी इक मुस्कान बहुत
 
कहने वाले सच कहते हैं मान का है इक पान बहुत
 
कहने वाले सच कहते हैं मान का है इक पान बहुत
  
ज़िक्रे सियासत कल्लो गारत मंदिर मस्जिद धोखा-धडी
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ज़िक्रे सियासत क़त्लो-ग़ारत मंदिर- मस्जिद धोखा-धड़ी
 
ऐसी ख़बरें सुनते सुनते पक गए अपने कान बहुत  
 
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हर अरमान में इक दुनिया है और दिल में अरमान बहुत
 
हर अरमान में इक दुनिया है और दिल में अरमान बहुत
  
अल्लाह रे दस्तूरे मोहब्बत कैसी कसी शर्ते हैं
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अल्लाह रे दस्तूरे मोहब्बत कैसी कैसी शर्तें हैं
इश्क की सौ कुर्बानियां कम हैं हुस्न का इक एहसान बहुत
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इश्क की सौ कुर्बानियाँ कम हैं हुस्न का इक एहसान बहुत
  
 
कितना मज़ा आता था 'बेखुद' डूबने और उभरने में  
 
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आके किनारे राज़ खुला ये अच्छा था तूफ़ान बहुत </poem>
 
आके किनारे राज़ खुला ये अच्छा था तूफ़ान बहुत </poem>

07:52, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण

मैं तो बस्ती ढूँढ़ रहा था मुझको मिले शमशान बहुत
मेरे मालिक तेरे जहाँ में खेत हैं कम खलिहान बहुत

हुस्न की दौलत वाले मुझको तेरी इक मुस्कान बहुत
कहने वाले सच कहते हैं मान का है इक पान बहुत

ज़िक्रे सियासत क़त्लो-ग़ारत मंदिर- मस्जिद धोखा-धड़ी
ऐसी ख़बरें सुनते सुनते पक गए अपने कान बहुत

इस दुनिया में जो जिंदा हैं वो तो भूखे नंगे हैं
जो मुर्दा हैं उनके लिए हैं जीने के सामान बहुत

तेरे दीवाने के अलावा कोई न समझा उसअते दिल
हर अरमान में इक दुनिया है और दिल में अरमान बहुत

अल्लाह रे दस्तूरे मोहब्बत कैसी कैसी शर्तें हैं
इश्क की सौ कुर्बानियाँ कम हैं हुस्न का इक एहसान बहुत

कितना मज़ा आता था 'बेखुद' डूबने और उभरने में
आके किनारे राज़ खुला ये अच्छा था तूफ़ान बहुत