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"रात की बात / रमानाथ अवस्थी" के अवतरणों में अंतर
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दिन भर की आपाधापी से | दिन भर की आपाधापी से | ||
− | मन का दर्पण | + | मन का दर्पण धुँधलाया है । |
जिसने जितना दिया यहाँ पर | जिसने जितना दिया यहाँ पर | ||
− | उसने उतना ही पाया | + | उसने उतना ही पाया है । |
सबकुछ पा लेने की धुन में | सबकुछ पा लेने की धुन में | ||
− | सबके सब दिखते हैं | + | सबके सब दिखते हैं रोगी । |
सत्य एक होता है उसको | सत्य एक होता है उसको | ||
− | पाने वाले कम ही | + | पाने वाले कम ही होते । |
एक समय आता है जब हम | एक समय आता है जब हम | ||
− | बिना चाह के | + | बिना चाह के सब कुछ खोते |
ऐसे दुख में कभी न फँसता | ऐसे दुख में कभी न फँसता | ||
− | केवल एक अकेला | + | केवल एक अकेला योगी । |
− | वैसे तो दुख तरह तरह के | + | वैसे तो दुख तरह-तरह के |
पर दौलत का दुख अजीब है | पर दौलत का दुख अजीब है | ||
जो केवल पैसे पर मरता | जो केवल पैसे पर मरता | ||
− | वही यहाँ सबसे | + | वही यहाँ सबसे ग़रीब है |
ऐसे दुख का अर्थ जानता | ऐसे दुख का अर्थ जानता | ||
− | दुनिया में बस केवल | + | दुनिया में बस केवल भोगी । |
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21:30, 21 नवम्बर 2010 के समय का अवतरण
रात की बात, रात को होगी
दिन भर की आपाधापी से
मन का दर्पण धुँधलाया है ।
जिसने जितना दिया यहाँ पर
उसने उतना ही पाया है ।
सबकुछ पा लेने की धुन में
सबके सब दिखते हैं रोगी ।
सत्य एक होता है उसको
पाने वाले कम ही होते ।
एक समय आता है जब हम
बिना चाह के सब कुछ खोते
ऐसे दुख में कभी न फँसता
केवल एक अकेला योगी ।
वैसे तो दुख तरह-तरह के
पर दौलत का दुख अजीब है
जो केवल पैसे पर मरता
वही यहाँ सबसे ग़रीब है
ऐसे दुख का अर्थ जानता
दुनिया में बस केवल भोगी ।