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"अब मेरा दिल कोई मजहब न मसीहा मांगे / अज़ीज़ आज़ाद" के अवतरणों में अंतर
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ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आख़र | ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आख़र | ||
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कितना लाज़म है मुहब्बत में सलीका ऐ‘अज़ीज़’ | कितना लाज़म है मुहब्बत में सलीका ऐ‘अज़ीज़’ | ||
ये ग़ज़ल जैसा कोई नर्म-सा लहज़ा माँगे | ये ग़ज़ल जैसा कोई नर्म-सा लहज़ा माँगे | ||
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08:16, 22 नवम्बर 2010 का अवतरण
अब मेरा दिल कोई मज़हब न मसीहा माँगे
ये तो बस प्यार से जीने का सलीका माँगे
ऐसी फ़सलों को उगाने की ज़रूरत क्या है
जो पनपने के लिए ख़ून का दरिया माँगे
सिर्फ़ ख़ुशियों में ही शामिल है ज़माना सारा
कौन है वो जो मेरे दर्द का हिस्सा माँगे
ज़ुल्म है, ज़हर है, नफ़रत है, जुनूँ है हर सू
ज़िन्दगी मुझसे कोई प्यार का रिश्ता माँगे
ये तआलुक है कि सौदा है या क्या है आख़र
लोग हर जश्न पे मे
हमान से पैसा माँगे
कितना लाज़म है मुहब्बत में सलीका ऐ‘अज़ीज़’
ये ग़ज़ल जैसा कोई नर्म-सा लहज़ा माँगे