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"हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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(नया पृष्ठ: <poem>हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे, क्यों जाने ज़हर का जाम हुए । आगाज…)
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17:34, 30 नवम्बर 2010 का अवतरण

हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे, क्यों जाने ज़हर का जाम हुए ।
आगाज़ में उषा बन के उगे, अंजाम में ढलती शाम हुए ।
एक प्यार के सौदे की बात ही क्या, हर कम में हम नाकाम हुए।
हमें नाम भी अपना न याद रहा, इतना जग में बदनाम हुए ।