भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"जो न प्रिय पहिचान पाती / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=महादेवी वर्मा }} '''काव्य संग्रह [[दीपशिखा / महादेवी वर्म...)
 
छो
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?<br>
 
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?<br>
 
किसलिये हर साँस तम में<br>
 
किसलिये हर साँस तम में<br>
सजल दीपक राग गाती?<br>
+
सजल दीपक राग गाती?<br><br>
 +
 
 
चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फिर घेरते क्यों?<br>
 
चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फिर घेरते क्यों?<br>
 
मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?<br>
 
मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?<br>
 
सजग स्मित क्यों चितवनों के<br>
 
सजग स्मित क्यों चितवनों के<br>
सुप्त प्रहरी को जगाती?<br>
+
सुप्त प्रहरी को जगाती?<br><br>
 +
 
 
मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,<br>
 
मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,<br>
 
जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,<br>
 
जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,<br>
 
किसलिये पावस नयन में<br>
 
किसलिये पावस नयन में<br>
प्राण में चातक बसाती?<br>
+
प्राण में चातक बसाती?<br><br>
 +
 
 
कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,<br>
 
कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,<br>
 
शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,<br>
 
शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,<br>
 
क्यों किसी के आगमन के<br>
 
क्यों किसी के आगमन के<br>
शकुन स्पन्दन में मनाती?<br>
+
शकुन स्पन्दन में मनाती?<br><br>

17:10, 1 जून 2007 का अवतरण

काव्य संग्रह दीपशिखा से

जो न प्रिय पहिचान पाती।
दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?
किसलिये हर साँस तम में
सजल दीपक राग गाती?

चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फिर घेरते क्यों?
मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?
सजग स्मित क्यों चितवनों के
सुप्त प्रहरी को जगाती?

मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,
जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,
किसलिये पावस नयन में
प्राण में चातक बसाती?

कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,
शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,
क्यों किसी के आगमन के
शकुन स्पन्दन में मनाती?