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"जो न प्रिय पहिचान पाती / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?<br> | मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?<br> | ||
सजग स्मित क्यों चितवनों के<br> | सजग स्मित क्यों चितवनों के<br> | ||
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जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,<br> | जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,<br> | ||
किसलिये पावस नयन में<br> | किसलिये पावस नयन में<br> | ||
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शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,<br> | शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,<br> | ||
क्यों किसी के आगमन के<br> | क्यों किसी के आगमन के<br> | ||
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17:10, 1 जून 2007 का अवतरण
काव्य संग्रह दीपशिखा से
जो न प्रिय पहिचान पाती।
दौड़ती क्यों प्रति शिरा में प्यास विद्युत-सी तरल बन
क्यों अचेतन रोम पाते चिर व्यथामय सजग जीवन?
किसलिये हर साँस तम में
सजल दीपक राग गाती?
चांदनी के बादलों से स्वप्न फिर-फिर घेरते क्यों?
मदिर सौरभ से सने क्षण दिवस-रात बिखेरते क्यों?
सजग स्मित क्यों चितवनों के
सुप्त प्रहरी को जगाती?
मेघ-पथ में चिह्न विद्युत के गये जो छोड़ प्रिय-पद,
जो न उनकी चाप का मैं जानती सन्देश उन्मद,
किसलिये पावस नयन में
प्राण में चातक बसाती?
कल्प-युगव्यापी विरह को एक सिहरन में सँभाले,
शून्यता भर तरल मोती से मधुर सुधि-दीप बाले,
क्यों किसी के आगमन के
शकुन स्पन्दन में मनाती?