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"कविता रै औळे-दौळै / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर

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बैठ्यो
 
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आव घुम‘र आवां
 
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किंया समझावूं
 
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गुवाड़ तो गुवाड़ म्हैं तो घूम लेवूं
 
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आखै जग में कविता रै औळे-दौळै
 
आखै जग में कविता रै औळे-दौळै
एकलो बैठयो ई।
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एकलो बैठयो ई ।
 
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22:24, 30 नवम्बर 2010 का अवतरण

भायलो कैवे
बावळो हुग्यो कांई
कांई सोचै है
बैठ्यो
आव घुम‘र आवां
गुवाड़ में ।

किंया समझावूं
गुवाड़ तो गुवाड़ म्हैं तो घूम लेवूं
आखै जग में कविता रै औळे-दौळै
एकलो बैठयो ई ।