भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ओळमो किणनै ? / मदन गोपाल लढ़ा" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा |संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां…)
 
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा   
 
|रचनाकार=मदन गोपाल लढ़ा   
|संग्रह=म्हारी पाँती री चितावां / मदन गोपाल लढ़ा  
+
|संग्रह=म्हारै पांती री चिंतावां / मदन गोपाल लढ़ा  
 
}}
 
}}
 
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]

20:58, 1 दिसम्बर 2010 का अवतरण


भोत उंतावळो
बदळ रैयो है बगत
आप उण सूं ई
उंतावळा बदळणो चावो।
बदळतै जुग में
आपने फिकर है
कठैई बगत आगै नीं भाज जावै
आपनै लारै छोड‘र

कदी -कदास
आप पण
बगत नै लारै छोडणै री
मन में तेवडो।

बगत रै सागै
होङ मांय
जे आपरी जिंदगाणी
घूम-चक्करी बण जावै
तो ओळमो किणनै ??