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"हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे / कुमार अनिल" के अवतरणों में अंतर

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हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे, क्यों जाने ज़हर का जाम हुए ।
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हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे,  
आगाज़ में उषा बन के उगे, अंजाम में ढलती शाम हुए ।
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              क्यों जाने ज़हर का जाम हुए ।
एक प्यार के सौदे की बात ही क्या, हर काम में हम नाकाम हुए ।
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आगाज़ में उषा बन के उगे,
हमें नाम भी अपना याद न रहा, इतना जग में बदनाम हुए ।
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              अंजाम में ढलती शाम हुए ।
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एक प्यार के सौदे की बात ही क्या,  
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              हर काम में हम नाकाम हुए ।
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हमें नाम भी अपना न याद  रहा,  
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              इतना जग में बदनाम हुए ।

18:19, 4 दिसम्बर 2010 के समय का अवतरण


हम प्याले थे प्रीत सुधा रस भरे,
              क्यों जाने ज़हर का जाम हुए ।
आगाज़ में उषा बन के उगे,
              अंजाम में ढलती शाम हुए ।
एक प्यार के सौदे की बात ही क्या,
              हर काम में हम नाकाम हुए ।
हमें नाम भी अपना न याद रहा,
               इतना जग में बदनाम हुए ।