भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"रात आधी हो गई है / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 3 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
− | |संग्रह= निशा | + | |संग्रह=निशा निमन्त्रण / हरिवंशराय बच्चन |
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
रात आधी हो गई है! | रात आधी हो गई है! | ||
− | |||
जागता मैं आँख फाड़े, | जागता मैं आँख फाड़े, | ||
− | |||
हाय, सुधियों के सहारे, | हाय, सुधियों के सहारे, | ||
− | |||
जब कि दुनिया स्वप्न के जादू-भवन में खो गई है! | जब कि दुनिया स्वप्न के जादू-भवन में खो गई है! | ||
− | |||
रात आधी हो गई है! | रात आधी हो गई है! | ||
− | |||
सुन रहा हूँ, शांति इतनी, | सुन रहा हूँ, शांति इतनी, | ||
− | + | है टपकती बूंद जितनी | |
− | है टपकती बूंद जितनी | + | ओस की, जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गई है? |
− | + | ||
− | ओस | + | |
− | + | ||
रात आधी हो गई है! | रात आधी हो गई है! | ||
− | |||
दे रही कितना दिलासा, | दे रही कितना दिलासा, | ||
− | |||
आ झरोखे से ज़रा-सा, | आ झरोखे से ज़रा-सा, | ||
− | |||
चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गई है! | चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गई है! | ||
− | |||
रात आधी हो गई है! | रात आधी हो गई है! | ||
+ | </poem> |
01:10, 5 अक्टूबर 2009 के समय का अवतरण
रात आधी हो गई है!
जागता मैं आँख फाड़े,
हाय, सुधियों के सहारे,
जब कि दुनिया स्वप्न के जादू-भवन में खो गई है!
रात आधी हो गई है!
सुन रहा हूँ, शांति इतनी,
है टपकती बूंद जितनी
ओस की, जिनसे द्रुमों का गात रात भिगो गई है?
रात आधी हो गई है!
दे रही कितना दिलासा,
आ झरोखे से ज़रा-सा,
चाँदनी पिछले पहर की पास में जो सो गई है!
रात आधी हो गई है!