"शहीदों की चिताओं पर / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’" के अवतरणों में अंतर
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) छो ("शहीदों की चिताओं पर / जगदंबा प्रसाद मिश्र ’हितैषी’" सुरक्षित कर दिया ([edit=sysop] (indefinite) [move=sysop] (indefinite))) |
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) |
||
(5 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 8 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=जगदंबा प्रसाद मिश्र | + | |रचनाकार=जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ |
|संग्रह= | |संग्रह= | ||
}} | }} | ||
{{KKCatGhazal}} | {{KKCatGhazal}} | ||
<poem> | <poem> | ||
− | उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा | + | उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा |
− | रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा | + | रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा |
− | चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को | + | चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को |
− | बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा | + | बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा |
− | ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल | + | ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल |
− | पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा | + | पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा |
− | जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़ | + | जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़ |
− | न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा | + | न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा |
− | वतन | + | वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है |
− | सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा | + | सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा |
− | शहीदों की चिताओं पर | + | शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले |
− | वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा | + | वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा |
− | कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे | + | कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे |
− | जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा | + | जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा |
+ | |||
+ | '''रचनाकाल : 1916''' | ||
+ | [[चित्र:Shahidon-ki-chitaon-par-hitaishi.jpg|link=]]<br> | ||
+ | डॉ. हरिनारायण चौरसिया जो कि गोंदिया, महाराष्ट्र में रहते हैं और महाविद्यालय में प्राचार्य रह चुके हैं, ने एक पत्रिका और समाचार पत्र की कटिंग की तस्वीर भेजकर पुष्टि की है कि यह रचना [[जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’]] की है न कि महान क्रांतिकारी [[राम प्रसाद बिस्मिल]] की। [[कविता कोश टीम]] इस जानकारी के लिए उनकी आभारी है। | ||
</poem> | </poem> |
13:00, 23 मार्च 2019 के समय का अवतरण
उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा
रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा
चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को
बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा
ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल
पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा
जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़
न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा
वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है
सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा
शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले
वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा
कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे
जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा
रचनाकाल : 1916
डॉ. हरिनारायण चौरसिया जो कि गोंदिया, महाराष्ट्र में रहते हैं और महाविद्यालय में प्राचार्य रह चुके हैं, ने एक पत्रिका और समाचार पत्र की कटिंग की तस्वीर भेजकर पुष्टि की है कि यह रचना जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’ की है न कि महान क्रांतिकारी राम प्रसाद बिस्मिल की। कविता कोश टीम इस जानकारी के लिए उनकी आभारी है।