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|रचनाकार=नचिकेता
}}
[[Category:गीत]]{{KKCatNavgeet}}<poem>
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन
 
मिटके रहेगा अब शोषण
 
यह नकली आज़ादी भी
 
ख़ून हमारा पीती है
 
औ' सरमायेदारों की
 
बस्ती में ही जीती है
 हंसिये हँसिये की है भौंह तनी 
मिटके रहेगा क्रूर दमन
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन
 
मिटके रहेगा अब शोषण
 
सत्ताधारी के घर में
 
अब न मनेगी दीवाली
 
देती है संदेश हमें
 
उगते सूरज की लाली
 
तूफ़ानों ने ही आख़िर
 
दिया हमें फिर आमंत्रण
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन
 
मिटके रहेगा अब शोषण
हर घर की दीवारों की
 
सुलगी आज निगाहें हैं
 
हक़ की बड़ी लड़ाई को
 
फड़क रही फिर बाहें हैं
 
दशों दिशाओं में गूँजी
 
हथियारों की खन-खन-खन !
बजा हथौड़ा ठन-ठन-ठन !
 
मिटके रहेगा अब शोषण !
'''(1977 में रचित)</poem>
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