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इंतज़ार-1 / नीरज दइया

No change in size, 00:54, 16 मई 2013
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तुम्हारे ना कहने के बाद भीकुछ कहा था मैंने!क्यों है क्या कहा था मैंने?तुम्हारा इंतज़ारकुछ शब्द थे चाहता था जिनको कहना!जान लिए कैसे तुमनेबिना कहे ही....
तुम्हारी सुनकर- ‘नहीं’क्यों करता हूं- इंतजार?लगता है कि तुम आओगी !बार-बार आहट सुनता हूँहूं आहटऔर खोलकर देखता हूँ- घर का दरवाज़ाइंतज़ार इंतजार में तुम्हारेअब मैं ही बन गया हूँ दरवाज़ाहूं- दरवाजा!और खड़ा हूँ घर के बाहर इंतज़ार में ठहर गई है ज़िदगीमुझ अब इस निर्जीव कोतुम्हारे स्पर्श का इंतज़ार इंतजार है ....
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