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Kavita Kosh से
और अब मिल कर
किस दुनिया की दुनियादारी सोच रही हो
किस मज़हब और ज़ात और पात की फ़िक्र लागी लगी है
आओ चलें अब---
तीन ही 'बिलियन' साल बचे हैं!
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