भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

रे मन / लावण्या शाह

139 bytes added, 18:37, 28 जून 2008
{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=लावण्या शाह}} रे मन, तूने ना मानी हार!<br>घाव लगा बार बार,<br>फिर भी,रे मन, तूने ना मानी हार !<br>हर प्रहार सह चुका, सुख दुख से दह चुका,<br>जन्म मरण देख चुका,<br>जीवन के प्राँगण मेँ रम चुका,<br>हे मन ! तूने ना मानी हार!<br>भाई बँधु, प्रेम मध,माया विश्वास बिछोह,<br>भोग चुका, छोड चुका, टूट गिरा जीवनका बेर !<br>कितनी ही बेर ! हे मन ! तूने ना मानी हार!<br>सोम रस , हलाहल, आज हँसी कल रुदन,<br>जीवनके मरुस्थल मेँ,या की नँदनवन मेँ,<br>कर रहा प्रसार !<br>तूने ना मानी हार!<br>
हे मन ! तूने ना मानी हार!