भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
{{KKCatGhazal}}
<poem>
हवा खि़लाफ़ ख़िलाफ़ है लेकिन दिए जलाता हूँहज़ाऱ हज़ार मुश्किलें हैं फिर भी मुस्कराता हूँ
सलाम आँधियाँ करती हैं मेरे ज़ज़्बों को
कोई पर्दा नहीं है कुछ नहीं छुपाता हूँ
अनेक शेर मेर मेरे ज़ाया हो गये फिर भी रदीफ़, क़ाफ़िया, बहरेा बहरो वज़न निभाता हूँ
न मैं कबीर न ग़ालिब न मीर, मोमिन ही
मिला जो ज़ख़्म ज़माने से वही गाता हूँ
</poem>