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गुम वो लम्हाते-गुज़िश्ता<ref>अतीत की घड़ियाँ</ref> जो फ़रोज़ाँ<ref>प्रकाशमान</ref> थे कभी
हाफ़िज़ा<ref> स्मरण-शक्ति</ref> धुंध  धुन्ध तो इस धुंध धुन्ध में सारे निकले
चुप सी आँखों की वो आवाज़ ज़ेहन में गूँजी
इक फ़साने में सुना आप हमारे निकले
शहर क्या छोड़िये छोड़िए क्या लौटिये लौटिए वीराने को
अहले-वहशत<ref>पागल</ref> भी ख़िरद<ref>बुद्धि</ref> के ही पिटारे निकले
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