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Kavita Kosh से
कम-सा देखते हुए निश्चय ही सोच रहा था ज़्यादह
तुम कब लगती हो भोंदू
जैसे हर एक shakhs शख्स ख़ास ढंग में
या अपने किसी सही वक़्त में
हो जाता कद्दू की तरह
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