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{{KKRachna
|रचनाकार=जिगर मुरादाबादी
}}<poem>
[[Category:ग़ज़ल]]
<poem> इश्क़ फ़ना <ref>बर्बादी,तबाही,मृत्यु </ref> का नाम है इश्क़ में ज़िन्दगी न देख जल्वा-ए-आफ़्ताब <ref>सूर्य की आभा </ref> बन ज़र्रे में रोशनी न देख
शौक़ को रहनुमा बना जो हो चुका कभी न देख
तुझको ख़ुदा का वास्ता तू मेरी ज़िन्दगी न देख
जिसकी सहर भी शाम हो उसकी सियाह शवी शबी <ref>अँधेरी रात </ref> न देख</poem>{{KKMeaning}}