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|रचनाकार=कृष्ण बिहारी 'नूर'
}}
[[Category:ग़ज़ल]]{{KKCatGhazal}}<poem>धुन ये है आम तेरी रहगुज़र होने तक<br>हम गुज़र जाएँ ज़माने को ख़बर होने तक<br><br>
मुझको अपना जो बनाया है तो एक और करम<br>बेख़बर कर दे ज़माने को ख़बर होने तक<br><br>
अब मोहब्बत की जगह दिल में ग़मे-दौरां है<br>आइना टूट गया तेरी नज़र होने तक<br><br>
ज़िन्दगी रात है मैं रात का अफ़साना हूँ<br>आप से दूर ही रहना है सहर होने तक<br><br>
ज़िन्दगी के मिले आसार तो कुछ ज़िन्दा में<br>सर ही टकराईये दीवार में दर होने तक<br><br/poem>
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