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[[Category:ग़ज़ल]]
<poem>दोनों जहां दे के वो समझे ये ख़ुश रहा
यां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करें
दोनों जहाँ दे थक-थक के वो समझे ये ख़ुश रहा <br>हर मुक़ाम पे दो चार रह गयेयां आ पड़ी ये शर्म की तकरार क्या करेंतेरा पता न पायें, तो नाचार<brref>जिनका बस ना चले<br/ref>क्या करें
थक-थक क्या शम्अ़ के हर मक़ाम पे दो चार रह गयेनहीं है हवाख़्वाह<brref>तेरा पता न पायें तो नाचार क्या करेंशुभचिंतक<br/ref><br> क्या शमा के नहीं है हवा ख़्वाह अहल-ए-बज़्म<brref>महफिल वाले</ref>हो ग़म ही जां गुदाज़ जांगुदाज़<ref>जान घुलाने वाला</ref> तो ग़मख़्वार क्या करें<br><br/poem>{{KKMeaning}}
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