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खेलत फाग दुहूँ तिय कौ / बिहारी

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|रचनाकार=बिहारी
|संग्रह=
}} {{KKCatKavita}}[[Category: सवैया]]<poem>
खेलत फाग दुहूँ तिय कौ मन राखिबै कौ कियौ दाँव नवीनौ
 
प्यार जनाय घरैंनु सौं लै, भरि मूँठि गुलाल दुहूँ दृग दीनौ
 
लोचन मीडै उतै उत बेसु, इतै मैं मनोरथ पूरन कीनौ
 
नागर नैंक नवोढ़ त्रिया, उर लाय चटाक दै चूँबन लीनौ।
</poem>
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