भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
<poem>
चाहत जौ स्वबस संयोग स्याम-सुन्दर कौ,
::जोग के प्रयोग में हियौ तो बिलस्यौ रहै ।
कहै रतनाकर सु-अंतर मुखी ह्वै ध्यान,
::मंजु हिय-कंज-जगी जोति मैं धस्यौ रहै ॥
ऐसे करौं लीन आतमा कौं परमात्मा में,
::जामैं जड़-चेतन बिलस बिकस्यौ रहै ।
मोह-बस जोहत बिछोह जिय जाकौ छोहि,
::सो तौ सब अंतर-निरंतर बस्यौ रहै ॥30॥
</poem>
916
edits