भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
मुझे कहीं कुछ ना सुहाय रे, बालम बिना,
मोहे पलक कल्प सम लागे रे, कहूँ किसे ?
सखी रे मेरी ! बालमजी घर ना आये आए जी ।
पौष मास पियुजी परदेस रे, सखी मेरे,
मैं तो अकेली कैसे रहूँ रे इस ऋत में,
देखो खिलता मेरा जोबन जलाए वेश रे
सखी रे मेरी ! बालमजी घर ना आये आए जी ।
माघ में मन मिलने को अकुलाय रे अलबेले से
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,277
edits