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"इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

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इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
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आज पहली बार उससे मैनें बेवफ़ाई की
  
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वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
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या तो टूट कर रोया या ग़ज़लसराई की
  
इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की <br>
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तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में
आज पहली बार मैनें उससे बेवफ़ाई की <br><br>
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आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की  
  
वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में <br>
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हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से
या तो टूट कर रोया या ग़ज़लसराई की <br><br>
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तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की  
  
तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में <br>
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तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की <br><br>
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आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की  
  
हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से <br>
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फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद  
तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की <br><br>
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देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की  
 
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तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के <br>
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आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की <br><br>
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फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद <br>
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देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की <br><br>
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22:45, 11 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

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इस क़दर मुसलसल थीं शिद्दतें जुदाई की
आज पहली बार उससे मैनें बेवफ़ाई की

वरना अब तलक यूँ था ख़्वाहिशों की बारिश में
या तो टूट कर रोया या ग़ज़लसराई की

तज दिया था कल जिन को हमने तेरी चाहत में
आज उनसे मजबूरन ताज़ा आशनाई की

हो चला था जब मुझको इख़्तिलाफ़ अपने से
तूने किस घड़ी ज़ालिम मेरी हमनवाई की

तन्ज़-ओ-ताना-ओ-तोहमत सब हुनर हैं नासेह के
आपसे कोई पूछे हमने क्या बुराई की

फिर क़फ़स में शोर उठा क़ैदियों का और सय्याद
देखना उड़ा देगा फिर ख़बर रिहाई की