भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल करूँ न याद अगर किस तरह भुलाऊँ उ...)
 
 
(3 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 9 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
 
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
 
|रचनाकार=अहमद फ़राज़
 +
|संग्रह=दर्द आशोब / फ़राज़ ; ज़िंदगी ! ऐ ज़िंदगी ! / फ़राज़
 +
 
}}
 
}}
[[Category:गज़ल]]
+
[[Category:ग़ज़ल]]
 +
<poem>
 +
करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
 +
ग़ज़ल<ref>उर्दू की एक काव्य विधा</ref> बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे
  
करूँ न याद अगर किस तरह भुलाऊँ उसे <br>
+
वो ख़ार-ख़ार<ref>कँटीला</ref> है शाख़-ए-गुलाब<ref>गुलाब की टहनी</ref> की मानिन्द<ref>भाँति</ref>  
ग़ज़ल बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे <br><br>
+
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म<ref>घावों से भरा हुआ</ref> हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे
  
वो ख़ार-ख़ार है शाख़-ए-गुलाब की मानिन्द <br>
+
ये लोग तज़्क़िरे<ref>चर्चाएँ</ref> करते हैं अपने लोगों के
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे <br><br>
+
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे  
  
ये लोग तज़करे करते हैं अपने लोगों से <br>
+
मगर वो ज़ूदफ़रामोश<ref>भुलक्कड़</ref> ज़ूद-रंज<ref>शीघ्रबुरा मान जाने वाला</ref> भी है
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे <br><br>
+
कि रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे
  
मगर वो ज़ूदफ़रामोश ज़ूद रंज भी है <br>
+
वही जो दौलत-ए-दिल<ref>दिल की पूँजी</ref> है वही जो राहत-ए-जाँ<ref>जीवन का सुख</ref>  
के रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे <br><br>
+
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो<ref>उपदेशको</ref> गँवाऊँ उसे
  
वही जो दौलत-ए-दिल है वही जो राहत-ए-जाँ <br>
+
जो हमसफ़र<ref>सहयात्री</ref> सर-ए-मंज़िल<ref>गंतव्यस्थल पर</ref> बिछड़ रहा है "फ़राज़"
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो गँवाऊँ उसे <br><br>
+
अजब<ref>अचंभा</ref> नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे
  
जो हमसफ़र सर-ए-मंज़िल बिछड़ रहा है "फ़राज़" <br>
+
{{KKMeaning}}
अजब नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे <br><br>
+
</poem>

19:27, 19 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण

करूँ न याद मगर किस तरह भुलाऊँ उसे
ग़ज़ल<ref>उर्दू की एक काव्य विधा</ref> बहाना करूँ और गुनगुनाऊँ उसे

वो ख़ार-ख़ार<ref>कँटीला</ref> है शाख़-ए-गुलाब<ref>गुलाब की टहनी</ref> की मानिन्द<ref>भाँति</ref>
मैं ज़ख़्म-ज़ख़्म<ref>घावों से भरा हुआ</ref> हूँ फिर भी गले लगाऊँ उसे

ये लोग तज़्क़िरे<ref>चर्चाएँ</ref> करते हैं अपने लोगों के
मैं कैसे बात करूँ और कहाँ से लाऊँ उसे

मगर वो ज़ूदफ़रामोश<ref>भुलक्कड़</ref> ज़ूद-रंज<ref>शीघ्रबुरा मान जाने वाला</ref> भी है
कि रूठ जाये अगर याद कुछ दिलाऊँ उसे

वही जो दौलत-ए-दिल<ref>दिल की पूँजी</ref> है वही जो राहत-ए-जाँ<ref>जीवन का सुख</ref>
तुम्हारी बात पे ऐ नासिहो<ref>उपदेशको</ref> गँवाऊँ उसे

जो हमसफ़र<ref>सहयात्री</ref> सर-ए-मंज़िल<ref>गंतव्यस्थल पर</ref> बिछड़ रहा है "फ़राज़"
अजब<ref>अचंभा</ref> नहीं कि अगर याद भी न आऊँ उसे

शब्दार्थ
<references/>