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"अफ़्सोस है / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर

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बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है
 
बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है
 
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अपनी यादें, अपनी बातें ले कर जाना भूल गया,
 
जाने वाला जल्दी में था, मिल कर जाना भूल गया,
 
मुड़, मुड़ कर देखा था उसने जाते हुए रास्ते में,
 
जैसे कहना था कुछ, जो वो कहना भूल गया l
 

12:30, 9 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण

अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है
शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है

इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअत
बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है