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"अफ़्सोस है / अकबर इलाहाबादी" के अवतरणों में अंतर
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12:30, 9 अप्रैल 2014 के समय का अवतरण
अफ़्सोस है गुल्शन ख़िज़ाँ लूट रही है
शाख़े-गुले-तर सूख के अब टूट रही है
इस क़ौम से वह आदते-देरीनये-ताअत
बिलकुल नहीं छूटी है मगर छूट रही है