भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"इतियास (1) / भंवर भादाणी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भंवर भादाणी |संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी }} [[Catego…)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKGlobal}}
 
{{KKRachna
 
{{KKRachna
|रचनाकार=भंवर भादाणी
+
|रचनाकार=भंवर भादाणी
|संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी
+
|संग्रह=थार बोलै / भंवर भादाणी
 
}}
 
}}
[[Category:मूल राजस्थानी भाषा]]
 
 
{{KKCatKavita‎}}
 
{{KKCatKavita‎}}
<Poem>
+
{{KKCatRajasthaniRachna}}
 
+
<poem>
 
रैयो है
 
रैयो है
 
थांरो एक इतियास -
 
थांरो एक इतियास -
पंक्ति 55: पंक्ति 54:
 
कैरी मजाल क‘
 
कैरी मजाल क‘
 
धोखो केवै ...!
 
धोखो केवै ...!
 
+
कदै ई थे
 +
तोड़ण विश्वामितर रौ
 +
बरत
 +
धारये रूप
 +
मेनका ।
 +
म्हे माना
 +
माननी पड़ै
 +
थांरी -
 +
अर
 +
थांरे जिसां री
 +
महिमा।
 
</Poem>
 
</Poem>

16:06, 16 अक्टूबर 2013 के समय का अवतरण

रैयो है
थांरो एक इतियास -
लाम्बो
मोकळो लाम्बो।
आदमी रै
सागै-सागै
चाल्यो
थांरो इतियास
थां - थांरी
कींयां-कींयां बणाई
गाथावां-पोथ्यां
आ एक कां‘णी है -
अजूं तक छे नीं आयो जिकी रौ
आ कां‘णी है
साच
उत्ति ही सांच
जित्तो
सूरज अर चांद।
कदै ई थे।
भाखरी चढ़
निरखता हरी चादरी
समेट लैं‘वता -
एक निजर में।
धरती नै कर दैंवता
नागी -
साव नागी !
थांरी निजरां रा
जित्ता करां बखाण
उत्ता ई थोड़ा।
थांरी लिलाड़ी चमकती
थांरी आंख में जादू हो
थांरो चैरौ-पळपळतो सूरज
थांरा हाथ रा हुनरी
थांरा रैया है
घणाई सरूप
घणा घणा औतार !
कदै ई थे
द्रोणाचार्य बण‘र
बजाई तो
हाजरी बाजरी री
पण
मांग लियो
आसीस रै गरब सूं
जीवणो अंगूठो
एकलव्य रौ
कैरी मजाल क‘
धोखो केवै ...!
कदै ई थे
तोड़ण विश्वामितर रौ
बरत
धारये रूप
मेनका ।
म्हे माना
माननी पड़ै
थांरी -
अर
थांरे जिसां री
महिमा।