Last modified on 24 अप्रैल 2011, at 12:05

"तेरी बातें ही सुनाने आये / फ़राज़" के अवतरणों में अंतर

(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अहमद फ़राज़ }} Category:गज़ल तेरी बातें ही सुनाने आये<br> दोस...)
 
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
[[Category:गज़ल]]
 
[[Category:गज़ल]]
 +
<poem>
 +
तेरी बातें ही सुनाने आये
 +
दोस्त भी दिल ही दुखाने आये
  
तेरी बातें ही सुनाने आये<br>
+
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
दोस्त भी दिल ही दुखाने आये<br><br>
+
तेरे आने के ज़माने आये
  
फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं<br>
+
ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे
तेरे आने के ज़माने आये<br><br>
+
हम तुझे हाल सुनाने आये
  
ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे<br>
+
इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म
हम तुझे हाल सुनाने आये<br><br>
+
कौन ये बोझ उठाने आये
  
इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म<br>
+
अजनबी दोस्त हमें देख के हम
कौन ये बोझ उठाने आये<br><br>
+
कुछ तुझे याद दिलाने आये
  
अजनबी दोस्त हमें देख के हम<br>
+
दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम
कुछ तुझे याद दिलाने आये<br><br>
+
काश फिर कोई बुलाने आये
  
दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम<br>
+
अब तो रोने से भी दिल दुखता है
काश फिर कोई बुलाने आये<br><br>
+
शायद अब होश ठिकाने आये
  
अब तो रोने से भी दिल दुखता है<br>
+
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
शायद अब होश ठिकाने आये<br><br>
+
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये
  
क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी<br>
+
आ ना जाए कहीं फिर लौट के जाँ
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये<br><br>
+
मेरी मय्यत वो सझाने आये
  
सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"<br>
+
सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"
नींद किस वक़्त न जाने आये<br><br>
+
नींद किस वक़्त न जाने आये
 +
</poem>

12:05, 24 अप्रैल 2011 के समय का अवतरण

तेरी बातें ही सुनाने आये
दोस्त भी दिल ही दुखाने आये

फूल खिलते हैं तो हम सोचते हैं
तेरे आने के ज़माने आये

ऐसी कुछ चुप सी लगी है जैसे
हम तुझे हाल सुनाने आये

इश्क़ तन्हा है सर-ए-मंज़िल-ए-ग़म
कौन ये बोझ उठाने आये

अजनबी दोस्त हमें देख के हम
कुछ तुझे याद दिलाने आये

दिल धड़कता है सफ़र के हंगाम
काश फिर कोई बुलाने आये

अब तो रोने से भी दिल दुखता है
शायद अब होश ठिकाने आये

क्या कहीं फिर कोई बस्ती उजड़ी
लोग क्यूँ जश्न मनाने आये

आ ना जाए कहीं फिर लौट के जाँ
मेरी मय्यत वो सझाने आये

सो रहो मौत के पहलू में "फ़राज़"
नींद किस वक़्त न जाने आये