भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"साँचा:KKPoemOfTheWeek" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(7 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 107 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
<div class='box_lk' style="background-color:#DD5511;width:100%; align:center"><div class='boxtop_lk'><div></div></div>
+
<div style="background:#eee; padding:10px">
<div class='boxheader_lk' style='background-color:#DD5511; color:#ffffff'></div>
+
<div style="background: transparent; width:95%; height:450px; overflow:auto; border:0px inset #aaa; padding:10px">
<div id="kkHomePageSearchBoxDiv" class='boxcontent_lk' style='background-color:#FFF3DF;border:1px solid #DD5511;'>
+
<!----BOX CONTENT STARTS------>
+
<table width=100% style="background:transparent">
+
<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
+
<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
+
<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : शीत लहर<br>
+
&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[विजेन्द्र]]</td>
+
</tr>
+
</table>
+
<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
+
शीत लहर चलती है पूरे उत्तर भारत में
+
ठिठुर रहे जन-- जिनके वसन नहीं हैं तन पर
+
बंदी हैं अपने कालचक्र में, फिर भी वे तन कर
+
खड़े रहे अपने ही बल पर, विचलित आरत में
+
  
होते हैं, रहते सावधान जीवन जीना है
+
<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
उनको अपने से ही, ऐसी व्याकुलता जगती
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
है मन में, कहाँ खड़े हों पल भर धरती तपती
+
है, जाड़े से भी बहतेरे मरते हैं, पीना है
+
  
अमृत जल-- ऐसा सौभाग्य कहाँ मिलता है
+
<div style="text-align: center;">
भद्रलोक को सुविधाएँ हैं सारी, कहाँ सताता
+
रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
पाला उनको, दाता उनका है, शास्त्र बताता
+
</div>
है-- खरपतवारों के मध्य फूल कहाँ खिलता है ।
+
  
फिर हुई घोषणा गलन अभी और बढ़ेगी
+
<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
हड्डी-पसली टूटेगी निर्मम खाल कढ़ेगी ।
+
खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
</pre>
+
अपरिचित पास आओ
<!----BOX CONTENT ENDS------>
+
 
</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
+
आँखों में सशंक जिज्ञासा
 +
मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
 +
जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
 +
स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
 +
हिलो-मिलो फिर एक डाल के
 +
खिलो फूल-से, मत अलगाओ
 +
 
 +
सबमें अपनेपन की माया
 +
अपने पन में जीवन आया
 +
</div>
 +
</div></div>

19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया