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18:00, 21 जनवरी 2011 के समय का अवतरण
मनहर,
जैविक जीवन-धारी
रंग-बिरंगे पंखों वाला
यह कठफोड़वा,
प्रकृति-प्रिया की
शिल्प-सँवारी
अनुपम कृति का छंद है
जो आता है,
मुझको देकर
शिल्प सँवारा छंद,
उड़ जाता है,
मन से कभी न उड़ पाता है,
भाषा भाषी बन जाता है।
रचनाकाल: २९-१२-१९९१