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(New page: कवि जी पकड़े गए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ <br> {{KKGlobal}<br> [[रामेश्वर काम्ब...)
 
 
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[[कवि जी पकड़े गए / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[ कुण्डलियाँ / गिरिधर कवि ]] <br>
  
  
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[गिरिधर कवि]] <br>
  
  
[[कविताएँ]] <br>
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[[कविता]] <br>
  
  
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[गिरिधर कवि]] <br>
  
  
 
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जानो नहीं जिस गाँव में ,कहा बूझनो नाम ।<br>
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तिन सखान की क्या कथा,जिनसो नहिं कुछ काम ॥<br>
 +
जिनसो नहिं कुछ काम,करे जो उनकी चरचा ।<br>
 +
राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥<br>
 +
कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।<br>
 +
ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥1॥<br>
  
 
+
-
हत्या के अभियोग में<br>
+
 
+
कवि जी पकड़े गए<br>
+
 
+
अति सुकोमल हाथ उनके<br>
+
 
+
हथकड़ियों में जकड़े गए ।<br>
+
 
+
आरोप था उन पर यह-<br>
+
 
+
कवि जी पथिक को रोककर<br>
+
 
+
कविता सुना रहे थे<br>
+
बेहोश जब वह हो जाता<br>
+
 
+
पानी छिड़ककर<br>
+
 
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उसे बार –बार<br>
+
 
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होश में ला रहे थे ।<br>
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[[श्वान-पीड़ित / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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जोंक जी<br>
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कई दिन से भरे हुए हैं<br>
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अपनी ही गली के कुत्तों से<br>
+
 
+
बेहद डरे हुए हैं<br>
+
 
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लोगों ने समझाया-<br>
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कुत्ते जब भी चौंकते हैं , <br>
+
 
+
तभी भौंकते हैं ; <br>
+
 
+
क्योंकि वे हर चोर को<br>
+
 
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उसके शरीर से निकली<br>
+
 
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गन्ध से पहचानते हैं , <br>
+
 
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भले ही वे कुत्ते हों<br>
+
 
+
आदमी को आदमी से<br>
+
 
+
ज़्यादा ही जानते हैं ।<br>
+
 
+
तुम्हारे मन में चोर है<br>
+
 
+
 
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तुम ईमान को खूँटी पर टाँगकर<br>
+
 
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दफ़्तर जाते हो<br>
+
 
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तभी तो गली के कुत्तों से<br>
+
 
+
इतना घबराते हो ।<br>
+
 
+
इस स्थिति के लिए<br>
+
 
+
तुम खुद ही जिम्मेदार हो <br>।
+
 
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भौंकता वही है , <br>
+
 
+
जो कुछ जानता है<br>
+
 
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जो भीड़ में घुसे चोरों को<br>
+
 
+
उनकी गन्ध से पहचानता है  ।<br>
+
 
+
भौंकने वालों पर<br>
+
 
+
लोग कब रीझते हैं ? <br>
+
 
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चोर –<br>
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हमेशा कुत्तों पर खीझते हैं ।<br>
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[[गाँव की चिट्ठी / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[दोहे ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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भीगे राधा के नयन , तिरते कई सवाल ।<br>
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कभी न ऊधौ पूछता ,ब्रज में आकर हाल।।1 <br>
+
 
+
चिट्ठी अब आती नहीं ,रोज सोचता बाप।<br>
+
 
+
जब- जब दिखता डाकिया ,और बढ़े संताप ।।2<br>
+
 
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रह रहकर के काँपते , माँ के बूढे़ हाथ ।<br>
+
 
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बूढ़ा पीपल ही बचा ,अब देने को साथ ।।3
+
 
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बहिन द्वार पर है खड़ी ,रोज देखती बाट ।<br>
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लौटी नौकाएँ सभी ,छोड़- छोड़कर घाट ।।4<br>
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आँगन गुमसुम है पडा़ , द्वार गली सब मौन ।<br>
+
 
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सन्नाटा कहने लगा ,अब लौटेगा कौन ।।5<br>
+
 
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नगर लुटेरे हो गये ,सगे लिये सब छीन ।<br>
+
 
+
रिश्ते सब दम तोड़ते, जैसे जल बिन मीन ।।6<br>
+
 
+
रोज काटती जा रही ,सुधियों की तलवार।<br>
+
 
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छीन लिया परदेस ने, प्यार- भरा परिवार।।7<br>
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वह नदिया में तैरना , घनी नीम की छाँव।<br>
+
 
+
रोज रुलाता है मुझे ,सपने तक में गाँव।।8<br>
+
 
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हरियाली पहने हुए, खेत देखते राह ।<br>
+
 
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मुझे शहर मे ले गया, पेट पकड़कर बाँह।।9<br>
+
 
+
 
+
डबडब आँसू हैं भरे ,नैन बनी चौपाल ।<br>
+
 
+
किस्से बाबा के सभी , बन बैठे बैताल ।।10<br>
+
 
+
बँधा मुकददर गाँव का ,पटवारी के हाथ।<br>
+
 
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दारू -मुर्गे के बिना तनिक न सुनता बात।।11<br>
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[[वासन्ती दोहे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[दोहे]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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वसन्त द्वारे है खडा़ ,मधुर मधुर मुस्कान ।<br>
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साँसों में सौरभ घुला ,जग भर से अनजान ।।1<br>
+
 
+
चिहुँक रही सुनसान में ,सुधियों की हर डाल ।<br>
+
 
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भूल न पाया आज तक , अधर छुअन वह भाल ।।2<br>
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जगा चाँद है देर तक ,आज नदी के कूल ।<br>
+
 
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लगता फिर से गड़ गया उर में तीखा शूल ।।3<br>
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मौसम बना बहेलिया ,जीना- मरना खेल ।।<br>
+
 
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घायल पाखी हो गए ,ऐसी लगी गुलेल ।।4<br>
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अँजुरी खाली रह गई ,बिखर गये सब फूल ।<br>
+
 
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उनके बिन मधुमास में ,उपवन लगते शूल।।5<br>
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[[मैं घर लौटा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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बहुत मैं घूमा पर्वत ­पर्वत<br>
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नदी घाट पार खूब नहाया <br>
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और पिया तीरथ का पानी<br>
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आग नहीं मन की बुझ पाई।<br><br>
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बहुत नवाया मैंने माथा<br>
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मन्दिर और मज़ारों पर भी<br>
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खोज न पाया अपने मन का<br>
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चैन जरा भी । <br><br>
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रेगिस्तानों में चलकर के<br>
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दूर गया मैं सूनेपन तक<br>
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आग मिली बस आग मिली थी।<br><br>
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मैं लौटा सब फेंक ­फाँककर<br>
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भगवा चोला और कमंडल<br>
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और खोजने की बेचैनी<br>
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उन सबको जो नहीं पास थे<br>
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पहले मेरे।<br><br>
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मैं घर लौटा।<br><br>
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आकर बैठा था आँगन में <br>
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टूटी खटिया पेड़ नीम का<br>
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बिटिया आई दौड़ी­ दौड़ी <br>
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दुबकी गोदी में वह आकर<br>
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पत्नी आई सहज भाव से<br>
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और छुआ मुझको धीरे से।<br><br>
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बरस पड़ी जैसे शीतलता<br>
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और चाँदनी भीनी­ भीनी<br>
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मेरे छोटे  से आँगन में । <br><br>
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मैं मूरख था , <br>
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अब तक भटका<br>
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बाहर­बाहर ।<br><br>
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झाँक न पाया था भीतर मैं<br><br>
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पावन मन्दिर , तीर्थ जहाँ था<br>
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और जहाँ थे ऊँचे पर्वत<br>
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शीतल ­शीतल , <br>
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और भावना की नदियाँ थीं<br><br>
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कल­कल करती<br>
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छल ­छल बहती।<br>
+
 
+
झोंके खुशबू के<br>
+
 
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भरे हुए थे , बात ­बात में।<br>
+
 
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जुड़े हुए थे  हम सब ऐसे<br>
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नाखून जुड़े हो <br>
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साथ मांस के<br>
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--[[सदस्य:Rdkamboj|Rdkamboj]] १२:४८, १२ जून २००७ (UTC)
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युगों ­युगों से । <br>
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[[ बचकर रहना / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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चारों ओर रेंगते विषधर <br>
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बचकर रहना।<br>
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इनसे बढ़कर मानुष का डर<br>
+
बचकर रहना।।<br>
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+
भले लोग ही बसे यहाँ हैं <br>
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इन भवनों में।<br>
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रोज फेंकते हैं ये पत्थर <br>
+
बचकर रहना।।<br>
+
 
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जहर बुझी है इनकी वाणी<br>
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कपट कवच है।<br>
+
 
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छल प्रपंच है इनका बिस्तर<br>
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बचकर रहना।।<br>
+
 
+
कदम  कदम पर फूलों का <br>
+
भ्रम फैलाते हैं ।<br>
+
 
+
छुपे हुए फूलों में नश्तर<br>
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बचकर रहना॥<br>
+
 
+
चन्दन- वन को राख किया है <br>
+
इन लोगों ने।<br>
+
 
+
अब आए ये वेश बदलकर<br>
+
बचकर रहना॥<br>
+
 
+
अंगारों पर चलकर हमने <br>
+
उम्र बिताई ।<br>
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+
ढूँढ, न पाए हम अपना घर<br>
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बचकर रहना॥<br>
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[[ज़रूरी है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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{{KKGlobal}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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जीवन के लिए जरूरी है<br><br>
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थोडी़ - सी  छाँव<br>
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थोडी़- सी  धूप।<br>
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थोडी़ - सा  प्यार<br>
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थोडी़-  सा  रूप।<br>
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जीवन के लिए जरूरी है…<br><br>
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थोडा़ तकरार<br>
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थोड़ी मनुहार ।<br>
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थोड़े -से शूल<br>
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अँजुरीभर फूल ।<br>
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+
जीवन के लिए जरूरी है…<br><br>
+
 
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दो चार आँसू<br>
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थोड़ी मुस्कान ।<br>
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थोड़ी - सा दर्द<br>
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थोड़े- से गान ।<br>
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जीवन के लिए जरूरी है…<br><br>
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उजली- सी भोर<br>
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सतरंगी शाम ।<br>
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हाथों को काम<br>
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तन को आराम ।<br>
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जीवन के लिए जरूरी है…<br><br>
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आँगन के पार<br>
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खुला हो द्वार ।<br>
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अनाम पदचाप<br>
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तनिक इन्तजार ।<br>
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+
जीवन के लिए जरूरी है …<br><br>
+
 
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निन्दा की धूल<br>
+
 
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उड़ा रहे मीत ।<br>
+
 
+
कभी ­ कभी हार<br>
+
 
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कभी ­  कभी जीत ।<br>
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[[बहता जल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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{{KKGlobal}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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[[कविताएँ]] <br>
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+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
+
 
+
 
+
 
+
हम तो बहता जल नदिया का<br>
+
 
+
अपनी यही कहानी बाबा।<br>
+
 
+
ठोकर खाना उठना गिरना<br>
+
 
+
अपनी कथा पुरानी बाबा।<br>
+
 
+
कब भोर हुई कब साँझ हुई<br>
+
 
+
आई कहाँ जवानी बाबा।<br>
+
 
+
तीरथ हो या नदी घाट पर<br>
+
 
+
हम तो केवल पानी बाबा।<br>
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+
जो भी पाया, वही लुटाया<br>
+
 
+
ऐसे औघड, दानी बाबा।<br>
+
 
+
अपने किस्से भूख­ प्यास के<br>
+
 
+
कहीं न राजा रानी बाबा।<br>
+
 
+
घाव पीठ पर , मन पर अनगिन<br>
+
 
+
हमको मिली निशानी बाबा।<br>
+
 
+
 
+
[[अधर पर मुस्कान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
{{KKGlobal}<br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
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+
 
+
 
+
अधर पर मुस्कान दिल में डर लिये<br>
+
 
+
लोग ऐसे ही मिले पत्थर लिये।<br>
+
 
+
आँधियाँ बरसात या कि बर्फ़ हो<br>
+
 
+
सो गये फुटपाथ पर ही घर लिये।<br>
+
 
+
धमकियों से क्यों डराते हो हमें<br>
+
 
+
घूमते हम सर हथेली पर लिये।<br>
+
 
+
मिल सका कुछ को नहीं दो बूँद जल<br>
+
 
+
और कुछ प्यासे रहे सागर लिये ।<br>
+
 
+
हार पहनाकर जिन्हें हम खुश हुए<br>
+
 
+
वे खड़े हैं सामने पत्थर लिये ।<br>
+
 
+
 
+
 
+
[[तिनका-तिनका / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
{{KKGlobal}<br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
+
 
+
 
+
 
+
 
+
 
+
 
+
तिनका ­तिनका लाकर चिड़िया<br>
+
 
+
रचती है आवास नया ।<br>
+
 
+
इसी तरह से रच जाता है<br>
+
 
+
सर्जन का आकाश नया ।<br>
+
 
+
मानव और दानव में यूँ तो<br>
+
 
+
भेद नजर नहीं आएगा ।<br>
+
 
+
एक पोंछता बहते आँसू<br>
+
 
+
जीभर एक रुलाएगा ।<br>
+
 
+
रचने से ही आ पाता है<br>
+
 
+
जीवन में विश्वास नया ।<br>
+
 
+
कुछ तो इस धरती पर केवल<br>
+
 
+
खून बहाने आते हैं ।<br>
+
 
+
आग बिछाते हैं राहों पर<br>
+
 
+
फिर खुद भी जल जाते हैं ।<br>
+
 
+
जो होते खुद मिटने वाले<br>
+
 
+
वे रचते इतिहास नया ।<br>
+
 
+
मंत्र नाश का पढ़ा करें कुछ<br>
+
 
+
द्वार -द्वार पर जा करके ।<br>
+
 
+
फूल खिलाने वाले रहते<br>
+
 
+
घर­ घर फूल खिला करके ।<br>
+
 
+
रहता सदा इन्हीं के दम पर<br>
+
 
+
सुरभि ­ सरोवर पास नया ।<br>
+
 
+
 
+
[[जंगल-जंगल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
{{KKGlobal}<br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
+
 
+
 
+
 
+
 
+
जंगल­ जंगल आग लगी है<br>
+
 
+
घिरे बीच में हम ।<br>
+
 
+
झुलस गया है रोयाँ ­रोयाँ<br>
+
 
+
हुई न आँखें नम ।<br>
+
 
+
रोते भी तो हम क्यों रोते<br>
+
 
+
दर्द समझता कौन ।<br>
+
 
+
कुछ हँसते ,कुछ नज़र चुराते<br>
+
 
+
कुछ रह जाते मौन । <br>
+
 
+
आग लगाने वाली दुनिया<br>
+
 
+
आग बुझाते कम ।<br>
+
 
+
अच्छे का अंजाम बुरा है<br>
+
 
+
जाने हम यह बात ।<br>
+
 
+
करें बुरा हम बोलो कैसे<br>
+
 
+
दिल कब देता साथ ।<br>
+
 
+
आशीर्वाद करें क्या लेकर<br>
+
 
+
शापित जनम­ जनम ।<br>
+
 
+
रेगिस्तानों में निकल पड़े हम<br>
+
 
+
प्यास बुझाने को ।<br>
+
 
+
कपटी साथी आए दूर तक<br>
+
 
+
राह बताने को ।<br>
+
 
+
हमने हँस ­हँस झेले तीखे<br>
+
 
+
चुभते तीर विषम ।<br>
+
 
+
 
+
[[अंधकार ये कैसा छाया / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
{{KKGlobal}<br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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+
[[कविताएँ]] <br>
+
 
+
 
+
[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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अंधकार ये कैसा छाया<br>
+
 
+
सूरज भी रह गया सहमकर ।<br>
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सिंहासन पर रावण बैठा<br>
+
 
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फिर से राम चले वन पथ पर ।<br>
+
 
+
लोग कपट के महलों में रह<br>
+
 
+
सारी उमर बिता देते हैं ।<br>
+
 
+
शिकन नहीं आती माथे पर<br>
+
 
+
छाती और फुला लेते हैं ।<br>
+
 
+
कौर लूटते हैं भूखों का<br>
+
 
+
फिर भी चलते हैं इतराकर ।।<br>
+
 
+
दरबारों में हाजि़र होकर<br>
+
 
+
गीत नहीं हम गाने वाले ।<br>
+
 
+
चरण चूमना नहीं है आदत<br>
+
 
+
ना हम शीश झुकाने वाले ।<br>
+
 
+
मेहनत की सूखी रोटी भी<br>
+
 
+
हमने खाई थी गा ­गाकर ।।<br>
+
 
+
दया नहीं है जिनके मन में<br>
+
 
+
उनसे अपना जुड़े न नाता ।<br>
+
 
+
चाहे सेठ मुनि ­ज्ञानी हो<br>
+
 
+
फूटी आँख न हमें सुहाता ।<br>
+
 
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ठोकर खाकर गिरते पड़ते<br>
+
 
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पथ पर बढ़ते रहे सँभलकर।।<br>
+
 
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[[गोरखधन्धा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
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मीठा - मीठा तुम बोले थे<br>
+
 
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मन में कपट कटारी थी ।<br>
+
 
+
मूरख बनकर रहे देखते<br>
+
 
+
आदत यही हमारी थी ।<br>
+
 
+
पूँछ हिलाना ,दाँत दिखाना<br>
+
 
+
मर्म सभी पहचाने हम ।<br>
+
 
+
कब काटोगे तुम चुपके से<br>
+
 
+
सारी बाते जानें हम ।<br>
+
 
+
चतुर सुजान समझते खुद को<br>
+
 
+
बहुत बड़ी लाचारी थी ।<br>
+
 
+
मूरख बनकर समझ सके हम<br>
+
 
+
दुनिया का गोरखधन्धा ।<br>
+
 
+
अपनेपन की कपट ओढ़नी<br>
+
 
+
है बहेलिये का फन्दा ।<br>
+
 
+
फन्दे में फँसकर उठी हँसी<br>
+
 
+
सौ खुशियों पर भारी थी ।<br>
+
 
+
न लेकर आये न ले जाना<br>
+
 
+
कैसा शोक मनाएँ हम ।<br>
+
 
+
नहीं बटोरे काँकर ­पाथर<br>
+
 
+
ताला कहाँ लगाएँ हम ।<br>
+
 
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तुम लुटकरके रातों जागे<br>
+
 
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हम पर छाई खुमारी थी ।<br>
+
 
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[[दौलत और नींद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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दौलत के नशे में नींद नहीं आती ।<br>
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फकी़र को लुटने का डर नहीं होता ॥<br>
+
 
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फुटपाथ पर हमको सोने दे हुज़ूर ।<br>
+
 
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मुफ़लिसों का कहीं भी घर नहीं होता ।।<br>
+
 
+
उपवन मत जलाओ कुछ शूल के लिए ।<br>
+
 
+
यों कोई शहर बेहतर नहीं होता ।।<br>
+
 
+
काबुल में खिलें या काशी में मह़कें ।<br>
+
 
+
फूल के हाथ में खंज़र नहीं होता ॥<br>
+
 
+
नाग पालकर वे चाहते रहे अमन ।<br>
+
 
+
ज़िन्दगी का इलाज ज़हर नहीं होता ॥<br>
+
 
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हो चुके हैं लोग अब इतने बेहया ।<br>
+
 
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चीख- पुकार का भी असर नहीं होता ॥<br>
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[[बंजारे हम / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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जनम ­ जनम के बंजारे हम<br>
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बस्ती बाँध न पाएगी ।<br>
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अपना डेरा वहीं लगेगा<br>
+
 
+
शाम जहाँ हो जाएगी ।<br>
+
 
+
जो भी हमको मिला राह में<br>
+
 
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बोल प्यार के बोल दिये ।<br>
+
 
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कुछ भी नहीं छुपाया दिल में<br>
+
 
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दरवाजे सब खोल दिये ।<br>
+
 
+
निश्छल रहना बहते जाना<br>
+
 
+
नदी जहाँ तक जाएगी ।<br>
+
 
+
ख्वाब नहीं महलों के देखे<br>
+
 
+
चट्टानों पर सोए हम ।<br>
+
 
+
फिर क्यों कुछ कंकड़ पाने को<br>
+
 
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रो रो नयन भिगोएँ हम ।<br>
+
 
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मस्ती अपना हाथ पकड़ कर<br>
+
 
+
मंजिल तक ले जाएगी ।<br>
+
 
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[[वश में है / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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तुमने फूल खिलाए<br>
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ताकि खुशबू बिखरे<br>
+
 
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हथेलियों मे रंग रचें ।<br>
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तुमने पत्थर तराशे<br>
+
 
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ताकि प्रतिष्ठित कर सको<br>
+
 
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सबके दिल में एक देवता ।<br>
+
 
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तुमने पहाड़ तोड़कर<br>
+
 
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बनाई एक पगडण्डी<br>
+
 
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ताकि लोग मीठी झील तक<br>
+
 
+
जा सकें<br>
+
 
+
नीर का स्वाद चखें<br>
+
 
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प्यास बुझा सकें ।<br>
+
 
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तुमने सूरज से माँगा उजाला<br>
+
 
+
और जड़ दिया एक चुम्बन<br>
+
 
+
कि हर बचपन खिलखिला सके<br>
+
 
+
यह तुम्हारे वश में है ।<br>
+
 
+
लोग काँटे उगाएँगे<br>
+
 
+
रास्ते मे बिछाएँगे<br>
+
 
+
लहूलुहान कदमों को देखकर<br>
+
 
+
मुस्कराएँगे ।<br>
+
 
+
पत्थर उछालेंगे<br>
+
 
+
अपनी कुत्सित  भावनाओं के<br>
+
 
+
उन्हें ही रात दिन<br>
+
 
+
दिल में बिछाकर<br>
+
 
+
कारागार बनाएँगे ।<br>
+
 
+
पहाड़ को तोड़ेंगे<br>
+
 
+
और एक पगडण्डी<br>
+
 
+
पाताल से जोड़ेंगे<br>
+
 
+
कि जो जाएँ<br>
+
 
+
वापस न आएँ।<br>
+
 
+
सूरज से माँगेगे आग<br>
+
 
+
और किसी का घर जलाएँगे ।<br>
+
 
+
यह उनके वश में है ।<br>
+
 
+
यह उनकी प्रवृत्ति है<br>
+
 
+
वह तुम्हारे वश में है ।<br>
+
 
+
 
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[[रिश्तों की आँच / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
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{{KKGlobal}<br>
+
 
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
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[[कविताएँ]] <br>
+
 
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
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+
 
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+
 
+
बुझ जाती है<br>
+
 
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दिए की लौ<br>
+
 
+
अलाव की आग<br>
+
 
+
फिर भी<br>
+
 
+
जिन्दा रहती है<br>
+
 
+
कहीं न कहीं<br>
+
 
+
रिश्तों की आँच<br>
+
 
+
मद्धिम ही सही ।<br>
+
 
+
सूख जाती है<br>
+
 
+
बरसाती नदी<br>
+
 
+
अलसाया-सा<br>
+
 
+
चट्टानों से निकला<br>
+
 
+
पतला सा– सोता जल का<br>
+
 
+
कहीं न कहीं ,फिर भी<br>
+
 
+
रह जाता है पानी<br>
+
 
+
कुछ पानीदार लोगों की<br>
+
 
+
चमकती आँखों में।<br>
+
 
+
लू के थपेड़ों में<br>
+
 
+
सूख जाते हैं<br>
+
 
+
हरे भरे उपवन<br>
+
 
+
सिर उठाती कलियाँ<br>
+
 
+
बच जाती है<br>
+
 
+
फिर भी<br>
+
 
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थोडी़ बहुत खुशबू<br>
+
 
+
कुछ लोगों की साँसों में<br>
+
 
+
दिल से अँखुआई<br>
+
 
+
बातों में ।<br>
+
 
+
इसी तरह<br>
+
 
+
ज़िन्दा रहते हैं फिर भी<br>
+
 
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आँच और पानी<br>
+
 
+
जीवन की खुशबू ।<br>
+
 
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[[मुदित नया साल / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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{{KKGlobal}<br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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[[कविताएँ]] <br>
+
 
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
+
 
+
~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~
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+
 
+
 
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ओस भीगी धरा<br>
+
 
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किरनों के पाँव<br>
+
 
+
उतरा है सूरज<br>
+
 
+
अपने इस गाँव ।<br>
+
 
+
पत्तों से छनकर<br>
+
 
+
आई है धूप<br>
+
 
+
निखरा है प्यारा<br>
+
 
+
धरती का रूप ।<br>
+
 
+
शरमाती कलियाँ<br>
+
 
+
मुस्काते फूल<br>
+
 
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बाट में बिछाए<br>
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घास के दुकूल ।<br>
+
 
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तरुवर पर पाखी<br>
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देते हैं ताल<br>
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द्वार पर खड़ा है<br>
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मुदित नया साल ।<br>
+
 
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[[बयान / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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{{KKGlobal}<br>
+
 
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
+
 
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[[कविताएँ]] <br>
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[[रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’]] <br>
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मैं बार– बार आऊँगा<br>
+
 
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लेकर फूलों का हार<br>
+
 
+
तुम्हारे द्वार ।<br>
+
 
+
 
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जितने भी काँटे पथ में<br>
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बिखरे हुए पाऊँगा<br>
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आने से पहले मैं<br>
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जरूर हटाऊँगा ।<br>
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मैं बार –बार आऊँगा ।<br>
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बहुत हैं अँधेरे जग में<br>
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आँगन में देहरी पर<br>
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जहाँ तक हो सकेगा<br>
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दीपक जलाऊँगा ।<br>
+
 
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मैं बार– बार आऊँगा ।<br>
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मुस्कानों की खुशबू को<br>
+
 
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बिखेर हर चेहरे पर<br>
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सूरज सी चमक सदा<br>
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हर बार लाऊँगा<br>
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मैं बार– बार आऊँगा ।<br>
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21:41, 9 अगस्त 2007 के समय का अवतरण

कुण्डलियाँ / गिरिधर कवि




गिरिधर कवि


कविता


गिरिधर कवि


~*~*~*~*~*~*~*~~*~*~*~*~*~*~*~



जानो नहीं जिस गाँव में ,कहा बूझनो नाम ।
तिन सखान की क्या कथा,जिनसो नहिं कुछ काम ॥
जिनसो नहिं कुछ काम,करे जो उनकी चरचा ।
राग द्वेष पुनि क्रोध बोध में तिनका परचा ॥
कह गिरिधर कविराय होइ जिन संग मिलि खानो।
ताकी पूछो जात बरन कुल क्या है जानो ॥1॥

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