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"शहर : एक बिम्ब / सांवर दइया" के अवतरणों में अंतर
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संकड़े कमरों में  | संकड़े कमरों में  | ||
आदमियों के पास  | आदमियों के पास  | ||
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| − | + | 		           सोए  | |
| − | + | 	                खड़े  | |
आदमी  | आदमी  | ||
| − | + | 	     आदमी  | |
| − | + | 		         आदमी  | |
जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-  | जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-  | ||
पुरानी और बेकार फाइलें-  | पुरानी और बेकार फाइलें-  | ||
| − | + | 			            बोरों में !  | |
'''अनुवाद : नीरज दइया'''  | '''अनुवाद : नीरज दइया'''  | ||
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14:50, 6 मार्च 2011 के समय का अवतरण
बडै शहरां रै
संकड़ै कमरां में 
मिनखां कनै
     बैठा
       सूता
          ऊभा
मिनख 
     मिनख
          मिनख
जाणै 
दाब-दाब र भरी हुवै
जूनी अर अकारण फाइलां 
               बोरां में !
कविता का हिंदी अनुवाद
बड़े शहर में
संकड़े कमरों में
आदमियों के पास
		       बैठे
		           सोए
	                खड़े
आदमी
	     आदमी
		         आदमी
जैसे ठूंस-ठूंस कर भरी हो-
पुरानी और बेकार फाइलें-
			            बोरों में !
अनुवाद : नीरज दइया
	
	