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| |रचनाकार=तुलसीदास | | |रचनाकार=तुलसीदास |
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| + | |संग्रह=विनयावली / तुलसीदास |
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− | <poem>
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− | (25)
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− | जयत्यंजनी-गर्भ-अंभोति-संभूत विधु विबुध- कुल-कैरवानंद कारी।
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− | केसरी-चारू-लोचन चकोरक-सुखद, लोक-शोक-संतापहारी।1।
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− | जयति जय बालकपि केलि-कैतुक उदित-चंडकर-मंडल -ग्रासकर्ता।
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− | राहु-रवि- शक्र- पवि- गर्व-खर्वीकरण शरण-भंयहरण जय भुवन-भर्ता।2।
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− | जयति रणधीर, रघुवीरहित, देवमणि, रूद्र-अवतार, संसार-पाता। विप्र-सुर-सिद्ध-मुनि-आशिषाकारवपुष, विमलगुण, बुद्धि-वारिधि-विधाता।3।
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− | जयति सुग्रीव-ऋक्षादि-रक्षण-निपुण, बालि-बलशालि-बध -मुख्यहेतू।
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− | जलधि लंधन सिंह सिंहिका-मद-मथन, रजनिचर-नगर-उत्पात-केतू।4।
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− | जयति भूनन्दिनी-शोच-मोचन विपिन-दलन घननादवश विगतशंका।
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− | लूमलीलाऽनल-ज्वालमाला कुलित होलिका करण लंकेश-लंका।5।
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− | जयति सौमित्र-रघुनंदनानंदकर, ऋक्ष-कपि-कटक-संघट -विधायी।
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− | बद्ध-वारिधि-सेतु अमर -मंगल-हेतु, भानुकुलकेतु-रण-विजयदायी।6।
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− | जयति जय वज्रतनु दशन नख मुख विकट, चंड-भुजदंड तरू-शैल-पानी।
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− | समर-तैलिक-यंत्र तिल-तमीचर-निकर, पेरिडारे सुभट घालि घानी।7।
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− | जयति दशकंठ घटकर्ण-वारिधि-नाद-कदन-कारन, कालनेमि-हंता।
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− | अघटघटना-सुघट सुघट-विघटन विकट, भूमि-पाताल -जल-गगन-गंता।8।
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− | जयति विश्व- विख्यात बानैत-विरूदावली, विदुष बरनत वेद विमल बानी।
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− | दास तुलसी त्रास शमन सीतारमण संग शोभित राम-राजधानी।9।
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− | (30)
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− | जके गति है हनुमान की।
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− | ताकी पैज पुजि आई, यह रेखा कुलिस पषानकी।1।
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− | अघटित-घटन, सुघट-बिघटन, ऐसी बिरूदावलि नहिं आनकी।
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− | सुमिरत संकट-सोच-बिमोचन, मूरति मोद-निधानकी।2।
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− | तापर सानुकूल गिरिजा, हर, लषन, राम अरू जानकी।
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− | तुलसी कपिकी कृपा-बिलोकनि, खानि सकल कल्यानकी।3।
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− | (31)
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− | जय ताकिहै तमकि ताकी ओर को।
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− | जाको है सब भांति भरोसो कपि केसरी-किसोरको।।
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− | जन-रंजन अरिगन-गंजन मुख-भंजन खल बरजोरको।
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− | बेद- पुरान-प्रगट पुरूषाराि सकल-सुभट -सिरमोर केा।।
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− | उथपे-थपन, थपे उथपन पन, बिबुधबृंद बँदिछोर को।
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− | जलधि लाँधि दहि लंे प्रबल बल दलन निसाचर घोर को।।
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− | जाको बालबिनोद समुझि जिय डरत दिाकर भोरको।
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− | जाकी चिबुक-चोट चूरन किय रद-मद कुलिस कठोरको।।
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− | लोकपाल अनुकूल बिलोकिवो चहत बिलोचन-कोरको।
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− | सदा अभय, जय, मुद-मंगलमय जो सेवक रनरोर को।।
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− | भगत-कामतरू नाम राम परिपूरन चंद चकोरको।
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− | तुलसी फल चारों करतल जस गावत गईबहोरको।।
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− | (32)
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− | ऐसी तोहि न बूझिये हनुमान हठीले।
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− | साहेब कहूँ न रामसे, तोसे न उसीले।।
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− | तेरे देखत सिंहके सिसु मेंढक लीले।
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− | जानक हौं कलि तेरेऊ मन गुनगन कीले।।
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− | हाँक सुनत दसकंधके भये बंधन ढीले।
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− | सो बल गयो किधौं भये अब गरबगहीले।।
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− | सेवकको परदा फटे तू समरथ सीले।
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− | अधिक आपुते आपुनो सुनि मान सही ले।।
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− | साँसति तुलसिदासकी सुनि सुजस तुही ले।
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− | तिहूँकाल तिनको भलौ जे राम-रँगीले।।
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− | (37)
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− | लाल लाड़िले लखन, हित हौ जनके।
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− | सुमिरे संकटहारी, सकल सुमंगलकारी,
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− | पालक कृपालु अपने पनके।1।
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− | धरनी-धरनहार भंजन-भुवनभार,
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− | अवतार साहसी सहसफनके।।
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− | सत्यसंध, सत्यब्रत, परम धरमरत,
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− | निरमल करम बचन अरू मनके।2।
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− | रूपके निधान, धनु-बान पानि,
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− | तून कटि, महाबीर बिदित, जितैया बड़े रनके।।
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− | सेवक-सुख-दायक, सबल, सब लायक,
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− | गायक जानकीनाथ गुनगनके।3।
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− | भावते भरतके, सुमित्रा-सीताके दुलारे,
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− | चातक चतुर राम स्याम घनके।।
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− | बल्लभ उरमिलाके, सुलभ सनेहबस,
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− | धनी धन तुलसीसे निरधनके।4।
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− | (38)
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− | जयति
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− | लक्ष्मणानंत भगवंत भुधर,
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− | भुजग- राज, भुवनेश, भुभारहारी।
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− | प्रलय-पावक-महाज्वालमाला-वमन, शमन-संताप लीलावतारी।1। ज
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− | यति दाशरथि, समर ,समरथ, सुमि़त्रा-सुवनत्यंजनी-गर्भ-अंभोति
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− | (39)
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− | जयति
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− | भूमिजा-रमण-पदकंज-मकरंद-रस-
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− | रिसक-मधुकर भरत भूरिभागी।
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− | भुवन-भूषण, भानुवंश-भूषण, भूमिपाल-
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− | मणि रामचंद्रानुरागागी।1।
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− | जयति विबुधेश-धनदादि-दुर्लभ-महा-
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− | राज संम्रा-सुख-पद-विरागी।
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− | खड्ग-धाराव्रती-प्रथमरेखा प्रकट
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− | शुद्धमति- युवति पति-प्रेमपागी।2।
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− | जयति निरूपाधि-भक्तिभाव-यंत्रित-हृदय,
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− | बंधु-हित चित्रकूटाद्रि-चारी।
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− | पादुका-नृप-सचिव, पुहुमि-पालक परम
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− | धरम-धुर-धीर, वरवीर भारी।3।
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− | जयति संजीवनी-समय-संकट हनूमान
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− | धनुबान-महिमा बखानी।
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− | बाहुबल बिपुल परमिति पराक्रम अतुल,
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− | गूढ़ गति जानकी-जानि जानी।4।
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− | जयति रण-अजिर गन्धर्व-गण-गर्वहर,
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− | फिर किये रामगुणगाथ-गाता।
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− | माण्डवी-चित्त-चातक-नवांबुद-बरन,
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− | सरन तुलसीदास अभय दाता।5।
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