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"शकुनाक्षर - शकुनादे / कुमांउनी" के अवतरणों में अंतर

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ये वो शगुन के आखर हैं - जो कुर्मंचालीय  संस्कृति में हर शुभ कार्य में बांचे जाते हैं. कुर्मांचल की परम्पराएं अनंत काल से शंख - घंट की ध्वनि एवं भरे हुए कलश को शगुन का पर्याय मानती आई हैं . कुल वधुओं के अखंड सौभाग्य एवं उनकी हरी - भरी गोद के प्रति अपनी समस्त शुभकामनाएं  संजोए  है यह शगुन गीत
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शकूनादे शकूनादे काजये,
 
शकूनादे शकूनादे काजये,
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आती नीका शकूना बोल्यां देईना ,
 
आती नीका शकूना बोल्यां देईना ,
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बाजन शंख शब्द ,
 
बाजन शंख शब्द ,
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देणी तीर भरियो कलश,
 
देणी तीर भरियो कलश,
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यातिनिका, सोरंगीलो,
 
यातिनिका, सोरंगीलो,
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पाटल आन्च्ली कमले को फूल सोही फूल मोलावंत गणेश,
 
पाटल आन्च्ली कमले को फूल सोही फूल मोलावंत गणेश,
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रामिचंद्र लछीमन जीवा जनम आद्या  अमरो होय,
 
रामिचंद्र लछीमन जीवा जनम आद्या  अमरो होय,
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सोही पाटो पैरी रैना ,
 
सोही पाटो पैरी रैना ,
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सिद्धि बुद्धि  सीता देही
 
सिद्धि बुद्धि  सीता देही
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बहुरानी आई वान्ती पुत्र वान्ती  होय
 
बहुरानी आई वान्ती पुत्र वान्ती  होय

21:11, 23 मार्च 2011 के समय का अवतरण

ये वो शगुन के आखर हैं - जो कुर्मंचालीय संस्कृति में हर शुभ कार्य में बांचे जाते हैं. कुर्मांचल की परम्पराएं अनंत काल से शंख - घंट की ध्वनि एवं भरे हुए कलश को शगुन का पर्याय मानती आई हैं . कुल वधुओं के अखंड सौभाग्य एवं उनकी हरी - भरी गोद के प्रति अपनी समस्त शुभकामनाएं संजोए है यह शगुन गीत


शकूनादे शकूनादे काजये,

आती नीका शकूना बोल्यां देईना ,

बाजन शंख शब्द ,

देणी तीर भरियो कलश,

यातिनिका, सोरंगीलो,

पाटल आन्च्ली कमले को फूल सोही फूल मोलावंत गणेश,

रामिचंद्र लछीमन जीवा जनम आद्या अमरो होय,

सोही पाटो पैरी रैना ,

सिद्धि बुद्धि सीता देही

बहुरानी आई वान्ती पुत्र वान्ती होय