"प्रिया प्रसाद / घनानंद" के अवतरणों में अंतर
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− | राधा राधा कहौं । कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥ | + | राधा राधा राधा कहौं । |
− | राधा जानौं राधा मानौं । मन राधा रस | + | कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥ |
− | राधा जीवन राधा प्रान । राधा ही राधा गुनगान ॥३॥ | + | |
− | राधा वृन्दावन की रानी । राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥ | + | राधा जानौं राधा मानौं । |
− | राधा व्रज जीवन की ज्यारी । राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥ | + | मन राधा रस ही मैं सानौं ॥२॥ |
− | राधा राधा राधा एक । सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥ | + | |
− | राधा अतुलरूप गुनभरी । ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥ | + | राधा जीवन राधा प्रान । |
− | राधा मदन गुपालहिं भावै । मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥ | + | राधा ही राधा गुनगान ॥३॥ |
− | राधा रस प्रसाद की साधा । रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥ | + | |
− | या राधा कों हौं आराधौं । राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥ | + | राधा वृन्दावन की रानी । |
− | राधा वचन, मौन हूँ राधा । राधा राधा राधा राधा ॥११॥ | + | राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥ |
− | सोये राधा, जागे राधा । रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥ | + | |
− | राधा हेरौं राधा सुनौं । राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥ | + | राधा व्रज जीवन की ज्यारी । |
− | राधा मेरी स्वामिनि साँची । थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥ | + | राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥ |
− | राधा जि कछु कहै, सो करौं । महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥ | + | |
− | राधा राधा गीत सुनाऊँ । राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥ | + | राधा राधा राधा एक । |
− | राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ । तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥ | + | सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥ |
− | राधा की चटकीली चेरी । चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥ | + | |
− | राधा रुचि हि लिए ई रहौं । विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥ | + | राधा अतुलरूप गुनभरी । |
− | रूप उज्यारी राधा देखौं । भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥ | + | ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥ |
− | राधा सबही भाँति लड़ाऊँ । राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥ | + | |
− | राधा सो कछु कहौं कहानी । परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥ | + | राधा मदन गुपालहिं भावै । |
− | चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ । हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥ | + | मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥ |
− | चरन हलाय जगाये जागौं । बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥ | + | |
− | राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ । टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥ | + | राधा रस प्रसाद की साधा । |
− | राधा की जूठनि ही जियैं । राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥ | + | रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥ |
− | राधा को सुख सदा मनाऊँ । सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥ | + | |
− | राधा ढिग जब श्याम निहारौं । समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥ | + | या राधा कों हौं आराधौं । |
− | राधा पिय पै विजना ढोरौं । श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥ | + | राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥ |
− | पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं । ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥ | + | |
− | राधा मोहन एकै दोऊ । नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥ | + | राधा वचन, मौन हूँ राधा । |
− | राधा हि लग कहत नहिं आवै । मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥ | + | राधा राधा राधा राधा ॥११॥ |
− | राधा मोहन मोहन राधा । हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥ | + | |
− | राधा प्रेम रसामृत सरसी । केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥ | + | सोये राधा, जागे राधा । |
− | राधा मन मैं मन दैं रहौं । राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥ | + | रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥ |
− | राधा को स्वभाव पहिचानौं । राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥ | + | |
− | राधा मन की मोसों बोलैं । गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥ | + | राधा हेरौं राधा सुनौं । |
− | हौं राधा की, राधा मेरी । कीरति की घर जाई चेरी ॥३८॥ | + | राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥ |
− | राधा की मन भाव तिलौंडी । राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥ | + | |
− | राधा चीर उतारन पाऊँ । भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥ | + | राधा मेरी स्वामिनि साँची । |
− | राधा मोकर पाय झवावै । भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥ | + | थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥ |
− | राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी । जाते तन कौं करति न न्यारी ॥४२॥ | + | |
− | लालबिहारी हूँ सौं ऐड़नि । राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥ | + | राधा जि कछु कहै, सो करौं । |
− | उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं । करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥ | + | महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥ |
− | अड़े दाय कौ काय परै जब । बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥ | + | |
− | मेरौ सुख हौही भर देखौं । राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥ | + | राधा राधा गीत सुनाऊँ । |
− | लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं । राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥ | + | राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥ |
− | राधा कौ सुख मेरो सुख है । मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥ | + | |
− | वेरी, पै अभिमान भरी हौं । ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥ | + | राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ । |
− | राधा की बलिहार भई हौं । राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥ | + | तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥ |
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+ | राधा की चटकीली चेरी । | ||
+ | चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥ | ||
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+ | राधा रुचि हि लिए ई रहौं । | ||
+ | विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥ | ||
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+ | रूप उज्यारी राधा देखौं । | ||
+ | भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥ | ||
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+ | राधा सबही भाँति लड़ाऊँ । | ||
+ | राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥ | ||
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+ | राधा सो कछु कहौं कहानी । | ||
+ | परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥ | ||
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+ | चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ । | ||
+ | हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥ | ||
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+ | चरन हलाय जगाये जागौं । | ||
+ | बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥ | ||
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+ | राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ । | ||
+ | टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥ | ||
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+ | राधा की जूठनि ही जियैं । | ||
+ | राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥ | ||
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+ | राधा को सुख सदा मनाऊँ । | ||
+ | सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥ | ||
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+ | राधा ढिग जब श्याम निहारौं । | ||
+ | समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥ | ||
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+ | राधा पिय पै विजना ढोरौं । | ||
+ | श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥ | ||
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+ | पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं । | ||
+ | ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥ | ||
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+ | राधा मोहन एकै दोऊ । | ||
+ | नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥ | ||
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+ | राधा हि लग कहत नहिं आवै । | ||
+ | मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥ | ||
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+ | राधा मोहन मोहन राधा । | ||
+ | हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥ | ||
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+ | राधा प्रेम रसामृत सरसी । | ||
+ | केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥ | ||
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+ | राधा मन मैं मन दैं रहौं । | ||
+ | राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥ | ||
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+ | राधा को स्वभाव पहिचानौं । | ||
+ | राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥ | ||
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+ | राधा मन की मोसों बोलैं । | ||
+ | गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥ | ||
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+ | हौं राधा की, राधा मेरी । | ||
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+ | राधा की मन भाव तिलौंडी । | ||
+ | राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥ | ||
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+ | राधा चीर उतारन पाऊँ । | ||
+ | भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥ | ||
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+ | राधा मोकर पाय झवावै । | ||
+ | भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥ | ||
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+ | राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी । | ||
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+ | राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥ | ||
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+ | उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं । | ||
+ | करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥ | ||
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+ | अड़े दाय कौ काय परै जब । | ||
+ | बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥ | ||
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+ | मेरौ सुख हौही भर देखौं । | ||
+ | राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥ | ||
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+ | लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं । | ||
+ | राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥ | ||
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+ | राधा कौ सुख मेरो सुख है । | ||
+ | मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥ | ||
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+ | वेरी, पै अभिमान भरी हौं । | ||
+ | ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥ | ||
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+ | राधा की बलिहार भई हौं । | ||
+ | राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥ | ||
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+ | राधा बिन कछु और न सूझौं । | ||
+ | सुरझि सुरझि अभिलाष उरुझौं ॥५१॥ | ||
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+ | राधा आँखिन आगे रहै । | ||
+ | राधा मन कौ मारग गहै ॥५२॥ | ||
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+ | रोम रोम राधा की व्यापनि । | ||
+ | रसिक जीवनी राधा जापनि ॥५३॥ | ||
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+ | राधा रटि सोई ह्वै जाऊँ । | ||
+ | तब पाऊँ राधा को गाऊँ ॥५४॥ | ||
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+ | राधा बरसाने की जाई । | ||
+ | ह्वै सँकेत नंदी सुर आई ॥५५॥ | ||
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+ | राधा की हौं कहौं कहा लौं । | ||
+ | ब्रजबन राधामई जहाँ लौं ॥५६॥ | ||
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+ | राधा के हित वंशी बाजै । | ||
+ | राधा राग भरे सुख साजै ॥५७॥ | ||
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+ | राधा बंसी की ठकुरायनि । | ||
+ | सुर पावड़े बिछावति चायनि ॥५८॥ | ||
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+ | नाम गाम सब राधा नेरैं । | ||
+ | राधा ही के बसौं बसेरैं ॥५९॥ | ||
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+ | यौ राधा न श्याम बिन रहै । | ||
+ | मेरे मन मैं राधा महै ॥६०॥ | ||
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+ | या राधा की महा अगमगति । | ||
+ | प्रेम पुंज मतिवती परम रति ॥६१॥ | ||
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+ | या राधा कौ प्रेम कहै को । | ||
+ | या राधा कौ नेम गहै को ॥६२॥ | ||
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+ | राधा रमन रमन हू राधा । | ||
+ | एकमेक ह्वै रहे अबाधा ॥६३॥ | ||
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+ | मिलन बिछोह कछु न सुधि परैं | ||
+ | अचिरज रीति राधिका धरैं ॥६४॥ | ||
+ | |||
+ | या राधा कौ रस अपरस है । | ||
+ | रस मूरति कौ परम सरस है ॥६५॥ | ||
+ | |||
+ | '''दोहा''' | ||
+ | कहिबो सुनिबो समझिबो राधा ही कौ होय । | ||
+ | राधा के हित की कथा भूलि सुमिरिहै सोय ॥६६॥ | ||
+ | |||
+ | राधा अकथ कथा कहौं, यह कहिबे की नाहिं । | ||
+ | राधा के जिय की दसा प्रीतम के हिय माहिं ॥६७॥ | ||
+ | |||
+ | व्रजमोहन आनंदघन, वृंदावन रसधाम । | ||
+ | अभिलाषनि बरसत रहै, राधा हित अभिराम ॥६८॥ | ||
+ | |||
+ | मधुर केलि रस-झेलि सों, रसना स्वाद सुरूप । | ||
+ | सुफल सुवानी वेलि को, राधा नाम अनूप ॥६९॥ | ||
+ | |||
+ | मेरे मन दृग रीझि की, राधा ही कों बूझि । | ||
+ | राधा के मन रीझि की, मोहिं बूझि अरु सूझि ॥७०॥ | ||
+ | |||
+ | राधा मेरे प्रान है, राधा प्रान गुपाल । | ||
+ | साँस कंठ धारे रहौं, राधा-मोहन माल ॥७१॥ | ||
+ | |||
+ | आनँदघन बरसत सदा, राधा-जीवन स्याम । | ||
+ | उज्वल रस में गौरता, प्रेम अवधि अभिराम ॥७२॥ | ||
+ | |||
+ | दोऊ मिलि एकै भये ललित रंगीली जोट । | ||
+ | जमुना तटनि रखौं सदा तरु बेलिनि की ओट ॥७३॥ | ||
+ | |||
+ | निपट लटपटे अटपटे, भरे चटपटी चोंप । | ||
+ | राधा मोद पयोद रस प्रगट केलिकुल कोंप ॥७४॥ | ||
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+ | व्रज मोहन उर अवनि मैं राधा सुपद बिहार । | ||
+ | रोम-रोम आनंद घन भीजे रसिक उदार ॥७५॥ | ||
+ | |||
+ | राधा हित आनंदघन मुरली गरज रसाल । | ||
+ | राधा हींके रस भरे मोहन मदन गुपाल ॥७६॥ | ||
+ | |||
+ | राधा के आनंद कौ मनमोहक मन साखि । | ||
+ | राधा को अभिलाष जो, राधा पिय अभिलाषि ॥७७॥ | ||
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+ | राधा रसिक सँजीवनी, राधा जीवन लाल । | ||
+ | राधा मोहन मैं सबै ब्रजबन बेलि तमाल ॥७८॥ | ||
+ | |||
+ | राधा मेरी संपदा, जिय की जीवन मूल । | ||
+ | राधा राधा रट सदा रोम रोम अनुकूल ॥७९॥ | ||
+ | |||
+ | राधा मोहन मुख लगी मुरली ह्वै दिन राति । | ||
+ | राधा ही राधा बजै अति मोहन धुनि जाति ॥८०॥ | ||
+ | |||
+ | राधा रास सिरोमनि, राधा केलि कुलीन । | ||
+ | राधा सकल कलाभरी, रस मूरति हित लीन ॥८१॥ | ||
+ | |||
+ | जो कछु है सो राधिका, मो कछु और न चाह । | ||
+ | राधा पद पन पैज कौ, राधा हाथ निबाह ॥८२॥ | ||
+ | |||
+ | राधा सब ठाँ, सब समै, रहति बहुगुनी संग । | ||
+ | तान रमन गुनगान की लै बरसावति रंग ॥८३॥ | ||
+ | |||
+ | राधा अचल सुहाग के ललित रँगीले गीत । | ||
+ | रागनि भींजी बहुगुनी रिझवति राधामीत ॥८४॥ | ||
+ | |||
+ | राधा चाहनि चाह सौं, राधा चाहनि चाह । | ||
+ | राधा ही रस सिंधु मैं, राधा राधा थाहि ॥८५॥ | ||
+ | |||
+ | राधा मो दृग पूतरी, भई स्याम लखि स्याम । | ||
+ | राधा राधा रमन कौ, अनुपम रूप ललाम ॥८६॥ | ||
+ | |||
+ | राधा पिय प्यासनि भरी, आनँदघन रसरासि । | ||
+ | स्याम रँगमगी सगमगी राधा रही प्रकासि ॥८७॥ | ||
+ | |||
+ | राधा राधा नाम कौ, रसनै महासवाद । | ||
+ | या प्रबंध कौ नामहू पायौ प्रिया प्रसाद ॥८८॥ | ||
+ | |||
+ | प्रिया प्रसाद प्रबंध कौं पाय सवादहिं लेत । | ||
+ | नित हित सहित सनेह च्वै रसना इह सुख देत ॥८९॥ | ||
+ | |||
+ | राधा मंगल मालती, सरस मधुव्रत श्याम । | ||
+ | जमुना तट राजत सदा रसिक सँजीवनि धाम ॥९०॥ | ||
+ | |||
+ | --समाप्त-- | ||
+ | </poem> |
12:44, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण
राधा राधा राधा कहौं ।
कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥
राधा जानौं राधा मानौं ।
मन राधा रस ही मैं सानौं ॥२॥
राधा जीवन राधा प्रान ।
राधा ही राधा गुनगान ॥३॥
राधा वृन्दावन की रानी ।
राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥
राधा व्रज जीवन की ज्यारी ।
राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥
राधा राधा राधा एक ।
सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥
राधा अतुलरूप गुनभरी ।
ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥
राधा मदन गुपालहिं भावै ।
मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥
राधा रस प्रसाद की साधा ।
रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥
या राधा कों हौं आराधौं ।
राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥
राधा वचन, मौन हूँ राधा ।
राधा राधा राधा राधा ॥११॥
सोये राधा, जागे राधा ।
रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥
राधा हेरौं राधा सुनौं ।
राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥
राधा मेरी स्वामिनि साँची ।
थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥
राधा जि कछु कहै, सो करौं ।
महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥
राधा राधा गीत सुनाऊँ ।
राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥
राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ ।
तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥
राधा की चटकीली चेरी ।
चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥
राधा रुचि हि लिए ई रहौं ।
विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥
रूप उज्यारी राधा देखौं ।
भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥
राधा सबही भाँति लड़ाऊँ ।
राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥
राधा सो कछु कहौं कहानी ।
परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥
चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ ।
हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥
चरन हलाय जगाये जागौं ।
बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥
राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ ।
टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥
राधा की जूठनि ही जियैं ।
राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥
राधा को सुख सदा मनाऊँ ।
सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥
राधा ढिग जब श्याम निहारौं ।
समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥
राधा पिय पै विजना ढोरौं ।
श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥
पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं ।
ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥
राधा मोहन एकै दोऊ ।
नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥
राधा हि लग कहत नहिं आवै ।
मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥
राधा मोहन मोहन राधा ।
हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥
राधा प्रेम रसामृत सरसी ।
केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥
राधा मन मैं मन दैं रहौं ।
राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥
राधा को स्वभाव पहिचानौं ।
राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥
राधा मन की मोसों बोलैं ।
गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥
हौं राधा की, राधा मेरी ।
कीरति की घर जाई चेरी ॥३८॥
राधा की मन भाव तिलौंडी ।
राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥
राधा चीर उतारन पाऊँ ।
भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥
राधा मोकर पाय झवावै ।
भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥
राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी ।
जाते तन कौं करति न न्यारी ॥४२॥
लालबिहारी हूँ सौं ऐड़नि ।
राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥
उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं ।
करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥
अड़े दाय कौ काय परै जब ।
बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥
मेरौ सुख हौही भर देखौं ।
राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥
लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं ।
राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥
राधा कौ सुख मेरो सुख है ।
मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥
वेरी, पै अभिमान भरी हौं ।
ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥
राधा की बलिहार भई हौं ।
राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥
राधा बिन कछु और न सूझौं ।
सुरझि सुरझि अभिलाष उरुझौं ॥५१॥
राधा आँखिन आगे रहै ।
राधा मन कौ मारग गहै ॥५२॥
रोम रोम राधा की व्यापनि ।
रसिक जीवनी राधा जापनि ॥५३॥
राधा रटि सोई ह्वै जाऊँ ।
तब पाऊँ राधा को गाऊँ ॥५४॥
राधा बरसाने की जाई ।
ह्वै सँकेत नंदी सुर आई ॥५५॥
राधा की हौं कहौं कहा लौं ।
ब्रजबन राधामई जहाँ लौं ॥५६॥
राधा के हित वंशी बाजै ।
राधा राग भरे सुख साजै ॥५७॥
राधा बंसी की ठकुरायनि ।
सुर पावड़े बिछावति चायनि ॥५८॥
नाम गाम सब राधा नेरैं ।
राधा ही के बसौं बसेरैं ॥५९॥
यौ राधा न श्याम बिन रहै ।
मेरे मन मैं राधा महै ॥६०॥
या राधा की महा अगमगति ।
प्रेम पुंज मतिवती परम रति ॥६१॥
या राधा कौ प्रेम कहै को ।
या राधा कौ नेम गहै को ॥६२॥
राधा रमन रमन हू राधा ।
एकमेक ह्वै रहे अबाधा ॥६३॥
मिलन बिछोह कछु न सुधि परैं
अचिरज रीति राधिका धरैं ॥६४॥
या राधा कौ रस अपरस है ।
रस मूरति कौ परम सरस है ॥६५॥
दोहा
कहिबो सुनिबो समझिबो राधा ही कौ होय ।
राधा के हित की कथा भूलि सुमिरिहै सोय ॥६६॥
राधा अकथ कथा कहौं, यह कहिबे की नाहिं ।
राधा के जिय की दसा प्रीतम के हिय माहिं ॥६७॥
व्रजमोहन आनंदघन, वृंदावन रसधाम ।
अभिलाषनि बरसत रहै, राधा हित अभिराम ॥६८॥
मधुर केलि रस-झेलि सों, रसना स्वाद सुरूप ।
सुफल सुवानी वेलि को, राधा नाम अनूप ॥६९॥
मेरे मन दृग रीझि की, राधा ही कों बूझि ।
राधा के मन रीझि की, मोहिं बूझि अरु सूझि ॥७०॥
राधा मेरे प्रान है, राधा प्रान गुपाल ।
साँस कंठ धारे रहौं, राधा-मोहन माल ॥७१॥
आनँदघन बरसत सदा, राधा-जीवन स्याम ।
उज्वल रस में गौरता, प्रेम अवधि अभिराम ॥७२॥
दोऊ मिलि एकै भये ललित रंगीली जोट ।
जमुना तटनि रखौं सदा तरु बेलिनि की ओट ॥७३॥
निपट लटपटे अटपटे, भरे चटपटी चोंप ।
राधा मोद पयोद रस प्रगट केलिकुल कोंप ॥७४॥
व्रज मोहन उर अवनि मैं राधा सुपद बिहार ।
रोम-रोम आनंद घन भीजे रसिक उदार ॥७५॥
राधा हित आनंदघन मुरली गरज रसाल ।
राधा हींके रस भरे मोहन मदन गुपाल ॥७६॥
राधा के आनंद कौ मनमोहक मन साखि ।
राधा को अभिलाष जो, राधा पिय अभिलाषि ॥७७॥
राधा रसिक सँजीवनी, राधा जीवन लाल ।
राधा मोहन मैं सबै ब्रजबन बेलि तमाल ॥७८॥
राधा मेरी संपदा, जिय की जीवन मूल ।
राधा राधा रट सदा रोम रोम अनुकूल ॥७९॥
राधा मोहन मुख लगी मुरली ह्वै दिन राति ।
राधा ही राधा बजै अति मोहन धुनि जाति ॥८०॥
राधा रास सिरोमनि, राधा केलि कुलीन ।
राधा सकल कलाभरी, रस मूरति हित लीन ॥८१॥
जो कछु है सो राधिका, मो कछु और न चाह ।
राधा पद पन पैज कौ, राधा हाथ निबाह ॥८२॥
राधा सब ठाँ, सब समै, रहति बहुगुनी संग ।
तान रमन गुनगान की लै बरसावति रंग ॥८३॥
राधा अचल सुहाग के ललित रँगीले गीत ।
रागनि भींजी बहुगुनी रिझवति राधामीत ॥८४॥
राधा चाहनि चाह सौं, राधा चाहनि चाह ।
राधा ही रस सिंधु मैं, राधा राधा थाहि ॥८५॥
राधा मो दृग पूतरी, भई स्याम लखि स्याम ।
राधा राधा रमन कौ, अनुपम रूप ललाम ॥८६॥
राधा पिय प्यासनि भरी, आनँदघन रसरासि ।
स्याम रँगमगी सगमगी राधा रही प्रकासि ॥८७॥
राधा राधा नाम कौ, रसनै महासवाद ।
या प्रबंध कौ नामहू पायौ प्रिया प्रसाद ॥८८॥
प्रिया प्रसाद प्रबंध कौं पाय सवादहिं लेत ।
नित हित सहित सनेह च्वै रसना इह सुख देत ॥८९॥
राधा मंगल मालती, सरस मधुव्रत श्याम ।
जमुना तट राजत सदा रसिक सँजीवनि धाम ॥९०॥
--समाप्त--