भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"प्रिया प्रसाद / घनानंद" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=घनानंद }} <poem> राधा राधा कहौं । कहि कहि राधा राधा लह…)
 
 
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 4: पंक्ति 4:
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
राधा राधा कहौं । कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥
+
राधा राधा राधा कहौं ।  
राधा जानौं राधा मानौं । मन राधा रस हीमैं सानौं ॥२॥
+
कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥
राधा जीवन राधा प्रान । राधा ही राधा गुनगान ॥३॥
+
 
राधा वृन्दावन की रानी । राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥
+
राधा जानौं राधा मानौं ।  
राधा व्रज जीवन की ज्यारी । राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥
+
मन राधा रस ही मैं सानौं ॥२॥
राधा राधा राधा एक । सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥
+
 
राधा अतुलरूप गुनभरी । ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥
+
राधा जीवन राधा प्रान ।  
राधा मदन गुपालहिं भावै । मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥
+
राधा ही राधा गुनगान ॥३॥
राधा रस प्रसाद की साधा । रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥
+
 
या राधा कों हौं आराधौं । राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥
+
राधा वृन्दावन की रानी ।  
राधा वचन, मौन हूँ राधा । राधा राधा राधा राधा ॥११॥
+
राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥
सोये राधा, जागे राधा । रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥
+
 
राधा हेरौं राधा सुनौं । राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥
+
राधा व्रज जीवन की ज्यारी ।  
राधा मेरी स्वामिनि साँची । थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥
+
राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥
राधा जि कछु कहै, सो करौं । महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥
+
 
राधा राधा गीत सुनाऊँ । राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥
+
राधा राधा राधा एक ।  
राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ । तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥
+
सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥
राधा की चटकीली चेरी । चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥
+
 
राधा रुचि हि लिए ई रहौं । विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥
+
राधा अतुलरूप गुनभरी ।  
रूप उज्यारी राधा देखौं । भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥
+
ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥
राधा सबही भाँति लड़ाऊँ । राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥
+
 
राधा सो कछु कहौं कहानी । परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥
+
राधा मदन गुपालहिं भावै ।  
चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ । हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥
+
मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥
चरन हलाय जगाये जागौं । बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥
+
 
राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ । टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥
+
राधा रस प्रसाद की साधा ।  
राधा की जूठनि ही जियैं । राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥
+
रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥
राधा को सुख सदा मनाऊँ । सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥
+
 
राधा ढिग जब श्याम निहारौं । समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥
+
या राधा कों हौं आराधौं ।  
राधा पिय पै विजना ढोरौं । श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥
+
राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥
पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं । ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥
+
 
राधा मोहन एकै दोऊ । नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥
+
राधा वचन, मौन हूँ राधा ।  
राधा हि लग कहत नहिं आवै । मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥
+
राधा राधा राधा राधा ॥११॥
राधा मोहन मोहन राधा । हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥
+
 
राधा प्रेम रसामृत सरसी । केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥
+
सोये राधा, जागे राधा ।  
राधा मन मैं मन दैं रहौं । राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥
+
रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥
राधा को स्वभाव पहिचानौं । राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥
+
 
राधा मन की मोसों बोलैं । गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥
+
राधा हेरौं राधा सुनौं ।  
हौं राधा की, राधा मेरी । कीरति की घर जाई चेरी ॥३८॥
+
राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥
राधा की मन भाव तिलौंडी । राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥
+
 
राधा चीर उतारन पाऊँ । भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥
+
राधा मेरी स्वामिनि साँची ।  
राधा मोकर पाय झवावै । भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥
+
थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥
राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी । जाते तन कौं करति न न्यारी ॥४२॥
+
 
लालबिहारी हूँ सौं ऐड़नि । राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥
+
राधा जि कछु कहै, सो करौं ।  
उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं । करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥
+
महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥
अड़े दाय कौ काय परै जब । बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥
+
 
मेरौ सुख हौही भर देखौं । राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥
+
राधा राधा गीत सुनाऊँ ।  
लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं । राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥
+
राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥
राधा कौ सुख मेरो सुख है । मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥
+
 
वेरी, पै अभिमान भरी हौं । ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥
+
राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ ।  
राधा की बलिहार भई हौं । राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥
+
तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥
 +
 
 +
राधा की चटकीली चेरी ।  
 +
चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥
 +
 
 +
राधा रुचि हि लिए ई रहौं ।  
 +
विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥
 +
 
 +
रूप उज्यारी राधा देखौं ।  
 +
भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥
 +
 
 +
राधा सबही भाँति लड़ाऊँ ।  
 +
राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥
 +
 
 +
राधा सो कछु कहौं कहानी ।  
 +
परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥
 +
 
 +
चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ ।  
 +
हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥
 +
 
 +
चरन हलाय जगाये जागौं ।  
 +
बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥
 +
 
 +
राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ ।  
 +
टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥
 +
 
 +
राधा की जूठनि ही जियैं ।  
 +
राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥
 +
 
 +
राधा को सुख सदा मनाऊँ ।  
 +
सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥
 +
 
 +
राधा ढिग जब श्याम निहारौं ।  
 +
समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥
 +
 
 +
राधा पिय पै विजना ढोरौं ।  
 +
श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥
 +
 
 +
पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं ।  
 +
ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥
 +
 
 +
राधा मोहन एकै दोऊ ।  
 +
नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥
 +
 
 +
राधा हि लग कहत नहिं आवै ।  
 +
मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥
 +
 
 +
राधा मोहन मोहन राधा ।  
 +
हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥
 +
 
 +
राधा प्रेम रसामृत सरसी ।  
 +
केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥
 +
 
 +
राधा मन मैं मन दैं रहौं ।  
 +
राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥
 +
 
 +
राधा को स्वभाव पहिचानौं ।  
 +
राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥
 +
 
 +
राधा मन की मोसों बोलैं ।  
 +
गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥
 +
 
 +
हौं राधा की, राधा मेरी ।  
 +
कीरति की घर जाई चेरी ॥३८॥
 +
 
 +
राधा की मन भाव तिलौंडी ।  
 +
राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥
 +
 
 +
राधा चीर उतारन पाऊँ ।  
 +
भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥
 +
 
 +
राधा मोकर पाय झवावै ।  
 +
भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥
 +
 
 +
राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी ।  
 +
जाते तन कौं करति न न्यारी ॥४२॥
 +
 
 +
लालबिहारी हूँ सौं ऐड़नि ।  
 +
राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥
 +
 
 +
उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं ।  
 +
करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥
 +
 
 +
अड़े दाय कौ काय परै जब ।  
 +
बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥
 +
 
 +
मेरौ सुख हौही भर देखौं ।  
 +
राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥
 +
 
 +
लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं ।  
 +
राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥
 +
 
 +
राधा कौ सुख मेरो सुख है ।  
 +
मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥
 +
 
 +
वेरी, पै अभिमान भरी हौं ।  
 +
ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥
 +
 
 +
राधा की बलिहार भई हौं ।  
 +
राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥
 +
 
 +
राधा बिन कछु और न सूझौं ।
 +
सुरझि सुरझि अभिलाष उरुझौं ॥५१॥
 +
 
 +
राधा आँखिन आगे रहै ।
 +
राधा मन कौ मारग गहै ॥५२॥
 +
 
 +
रोम रोम राधा की व्यापनि ।
 +
रसिक जीवनी राधा जापनि ॥५३॥
 +
 
 +
राधा रटि सोई ह्वै जाऊँ ।
 +
तब पाऊँ राधा को गाऊँ ॥५४॥
 +
 
 +
राधा बरसाने की जाई ।
 +
ह्वै सँकेत नंदी सुर आई ॥५५॥
 +
 
 +
राधा की हौं कहौं कहा लौं ।
 +
ब्रजबन राधामई जहाँ लौं ॥५६॥
 +
 
 +
राधा के हित वंशी बाजै ।
 +
राधा राग भरे सुख साजै ॥५७॥
 +
 
 +
राधा बंसी की ठकुरायनि ।
 +
सुर पावड़े बिछावति चायनि ॥५८॥
 +
 
 +
नाम गाम सब राधा नेरैं ।
 +
राधा ही के बसौं बसेरैं ॥५९॥
 +
 
 +
यौ राधा न श्याम बिन रहै ।
 +
मेरे मन मैं राधा महै ॥६०॥
 +
 
 +
या राधा की महा अगमगति ।
 +
प्रेम पुंज मतिवती परम रति ॥६१॥
 +
 
 +
या राधा कौ प्रेम कहै को ।
 +
या राधा कौ नेम गहै को ॥६२॥
 +
 
 +
राधा रमन रमन हू राधा ।
 +
एकमेक ह्वै रहे अबाधा ॥६३॥
 +
 
 +
मिलन बिछोह कछु न सुधि परैं
 +
अचिरज रीति राधिका धरैं ॥६४॥
 +
 
 +
या राधा कौ रस अपरस है ।
 +
रस मूरति कौ परम सरस है ॥६५॥
 +
 
 +
'''दोहा'''
 +
कहिबो सुनिबो समझिबो राधा ही कौ होय ।
 +
राधा के हित की कथा भूलि सुमिरिहै सोय ॥६६॥
 +
 
 +
राधा अकथ कथा कहौं, यह कहिबे की नाहिं ।
 +
राधा के जिय की दसा प्रीतम के हिय माहिं ॥६७॥
 +
 
 +
व्रजमोहन आनंदघन, वृंदावन रसधाम ।
 +
अभिलाषनि बरसत रहै, राधा हित अभिराम ॥६८॥
 +
 
 +
मधुर केलि रस-झेलि सों, रसना स्वाद सुरूप ।
 +
सुफल सुवानी वेलि को, राधा नाम अनूप ॥६९॥
 +
 
 +
मेरे मन दृग रीझि की, राधा ही कों बूझि ।
 +
राधा के मन रीझि की, मोहिं बूझि अरु सूझि ॥७०॥
 +
 
 +
राधा मेरे प्रान है, राधा प्रान गुपाल ।
 +
साँस कंठ धारे रहौं, राधा-मोहन माल ॥७१॥
 +
 
 +
आनँदघन बरसत सदा, राधा-जीवन स्याम ।
 +
उज्वल रस में गौरता, प्रेम अवधि अभिराम ॥७२॥
 +
 
 +
दोऊ मिलि एकै भये ललित रंगीली जोट ।
 +
जमुना तटनि रखौं सदा तरु बेलिनि की ओट ॥७३॥
 +
 
 +
निपट लटपटे अटपटे, भरे चटपटी चोंप ।
 +
राधा मोद पयोद रस प्रगट केलिकुल कोंप ॥७४॥
 +
 
 +
व्रज मोहन उर अवनि मैं राधा सुपद बिहार ।
 +
रोम-रोम आनंद घन भीजे रसिक उदार ॥७५॥
 +
 
 +
राधा हित आनंदघन मुरली गरज रसाल ।
 +
राधा हींके रस भरे मोहन मदन गुपाल ॥७६॥
 +
 
 +
राधा के आनंद कौ मनमोहक मन साखि ।
 +
राधा को अभिलाष जो, राधा पिय अभिलाषि ॥७७॥
 +
 
 +
राधा रसिक सँजीवनी, राधा जीवन लाल ।
 +
राधा मोहन मैं सबै ब्रजबन बेलि तमाल ॥७८॥
 +
 
 +
राधा मेरी संपदा, जिय की जीवन मूल ।
 +
राधा राधा रट सदा रोम रोम अनुकूल ॥७९॥
 +
 
 +
राधा मोहन मुख लगी मुरली ह्वै दिन राति ।
 +
राधा ही राधा बजै अति मोहन धुनि जाति ॥८०॥
 +
 
 +
राधा रास सिरोमनि, राधा केलि कुलीन ।
 +
राधा सकल कलाभरी, रस मूरति हित लीन ॥८१॥
 +
 
 +
जो कछु है सो राधिका, मो कछु और न चाह ।
 +
राधा पद पन पैज कौ, राधा हाथ निबाह ॥८२॥
 +
 
 +
राधा सब ठाँ, सब समै, रहति बहुगुनी संग ।
 +
तान रमन गुनगान की लै बरसावति रंग ॥८३॥
 +
 
 +
राधा अचल सुहाग के ललित रँगीले गीत ।
 +
रागनि भींजी बहुगुनी रिझवति राधामीत ॥८४॥
 +
 
 +
राधा चाहनि चाह सौं, राधा चाहनि चाह ।
 +
राधा ही रस सिंधु मैं, राधा राधा थाहि ॥८५॥
 +
 
 +
राधा मो दृग पूतरी, भई स्याम लखि स्याम ।
 +
राधा राधा रमन कौ, अनुपम रूप ललाम ॥८६॥
 +
 
 +
राधा पिय प्यासनि भरी, आनँदघन रसरासि ।
 +
स्याम रँगमगी सगमगी राधा रही प्रकासि ॥८७॥
 +
 
 +
राधा राधा नाम कौ, रसनै महासवाद ।
 +
या प्रबंध कौ नामहू पायौ प्रिया प्रसाद ॥८८॥
 +
 
 +
प्रिया प्रसाद प्रबंध कौं पाय सवादहिं लेत ।
 +
नित हित सहित सनेह च्वै रसना इह सुख देत ॥८९॥
 +
 
 +
राधा मंगल मालती, सरस मधुव्रत श्याम ।
 +
जमुना तट राजत सदा रसिक सँजीवनि धाम ॥९०॥
 +
 
 +
--समाप्त--
 +
</poem>

12:44, 21 मार्च 2011 के समय का अवतरण

राधा राधा राधा कहौं ।
कहि कहि राधा राधा लहौं ॥१॥

राधा जानौं राधा मानौं ।
मन राधा रस ही मैं सानौं ॥२॥

राधा जीवन राधा प्रान ।
राधा ही राधा गुनगान ॥३॥

राधा वृन्दावन की रानी ।
राधा ही मेरी ठकुरानी ॥४॥

राधा व्रज जीवन की ज्यारी ।
राधा प्राननाथ की प्यारी ॥५॥

राधा राधा राधा एक ।
सर्वोपर राधा हित टेक ॥६॥

राधा अतुलरूप गुनभरी ।
ब्रजवनिता कदंब मंजरी ॥७॥

राधा मदन गुपालहिं भावै ।
मुरली मैं राधा गुन गावै ॥८॥

राधा रस प्रसाद की साधा ।
रसिक राय कैं राधा राधा ॥९॥

या राधा कों हौं आराधौं ।
राधा ही राधा रट साधौं ॥१०॥

राधा वचन, मौन हूँ राधा ।
राधा राधा राधा राधा ॥११॥

सोये राधा, जागे राधा ।
रातिघौस राधा ही राधा ॥१२॥

राधा हेरौं राधा सुनौं ।
राधा समझौं राधा गुनौं ॥१३॥

राधा मेरी स्वामिनि साँची ।
थिर चित ह्वै राधा हित नाची ॥१४॥

राधा जि कछु कहै, सो करौं ।
महल टहल टकोर अनुसरौं ॥१५॥

राधा राधा गीत सुनाऊँ ।
राधा आगें राग जमाऊँ ॥१६॥

राधा कौं बहु भाँति रिझाऊँ ।
तीखी बातनि चोख हसाऊँ ॥१७॥

राधा की चटकीली चेरी ।
चित ही चढ़ी रहित नित मेरी ॥१८॥

राधा रुचि हि लिए ई रहौं ।
विहरत गृह वनगोहन महौं ॥१९॥

रूप उज्यारी राधा देखौं ।
भागन को सुख कहा बिसेखौं ॥२०॥

राधा सबही भाँति लड़ाऊँ ।
राधा रीझें राधा पाऊँ ॥२१॥

राधा सो कछु कहौं कहानी ।
परम रसीली अति मनमानी ॥२२॥

चाँपत चरन तनक झुकि जाऊँ ।
हुवै सीस राधा के पाऊँ ॥२३॥

चरन हलाय जगाये जागौं ।
बहुरि औंधि नित पाय ना लागूँ ॥२४॥

राधा धर्यौ बहुगुनी नाऊँ ।
टरि लगि रहौं बुलाये जाऊँ ॥२५॥

राधा की जूठनि ही जियैं ।
राधा की प्यासनि ही पियैं ॥२६॥

राधा को सुख सदा मनाऊँ ।
सुख दै दै हौं हूँ सुख पाउँ ॥२७॥

राधा ढिग जब श्याम निहारौं ।
समय उचित सुख टहल विचारौं ॥२८॥

राधा पिय पै विजना ढोरौं ।
श्रम जल सुखऊँ, मन रस बोरौं ॥२९॥

पियमय ह्वै प्यारी हित पा लौं ।
ललना लाल परस पर लालौं ॥३०॥

राधा मोहन एकै दोऊ ।
नैन प्रान मन प्रेम समोऊ ॥३१॥

राधा हि लग कहत नहिं आवै ।
मोहन की राधा रुचि पावै ॥३२॥

राधा मोहन मोहन राधा ।
हिलनि मिलनि विहरनि बिनु बाधा ॥३३॥

राधा प्रेम रसामृत सरसी ।
केलि कमल कुल सुषमा दरसी ॥३४॥

राधा मन मैं मन दैं रहौं ।
राधा के मन की सब लहौं ॥३५॥

राधा को स्वभाव पहिचानौं ।
राधा की रुचि रचना ठानौं ॥३६॥

राधा मन की मोसों बोलैं ।
गुपत गाँस अपनी रुचि खोलैं ॥३७॥

हौं राधा की, राधा मेरी ।
कीरति की घर जाई चेरी ॥३८॥

राधा की मन भाव तिलौंडी ।
राधा की आनंदनि औंड़ी ॥३९॥

राधा चीर उतारन पाऊँ ।
भाग बड़ाई कहा जनाऊं ॥४०॥

राधा मोकर पाय झवावै ।
भाग भरी महावरो घावै ॥४१॥

राधा कौं हौंसनि हौं प्यारी ।
जाते तन कौं करति न न्यारी ॥४२॥

लालबिहारी हूँ सौं ऐड़नि ।
राधा के गुमान की पैड़नि ॥४३॥

उसरि भरौं हित ढरौं अंग सौं ।
करौं टहल रसमसी रंग सौं ॥४४॥

अड़े दाय कौ काय परै जब ।
बिन बहुगुनी सवारै को तब ॥४५॥

मेरौ सुख हौही भर देखौं ।
राधा कौ सुख अंतर लेखौं ॥४६॥

लिखौं सुख, जब जब मुख देखौं ।
राधा कौं सुख कहा बिसेखौं ॥४७॥

राधा कौ सुख मेरो सुख है ।
मदन गुपाल निहारै मुख है ॥४८॥

वेरी, पै अभिमान भरी हौं ।
ठकुराइनिया भाँति करी हौं ॥४९॥

राधा की बलिहार भई हौं ।
राधा यौं अपनाय लई हौं ॥५०॥

राधा बिन कछु और न सूझौं ।
सुरझि सुरझि अभिलाष उरुझौं ॥५१॥

राधा आँखिन आगे रहै ।
राधा मन कौ मारग गहै ॥५२॥

रोम रोम राधा की व्यापनि ।
रसिक जीवनी राधा जापनि ॥५३॥

राधा रटि सोई ह्वै जाऊँ ।
तब पाऊँ राधा को गाऊँ ॥५४॥

राधा बरसाने की जाई ।
ह्वै सँकेत नंदी सुर आई ॥५५॥

राधा की हौं कहौं कहा लौं ।
ब्रजबन राधामई जहाँ लौं ॥५६॥

राधा के हित वंशी बाजै ।
राधा राग भरे सुख साजै ॥५७॥

राधा बंसी की ठकुरायनि ।
सुर पावड़े बिछावति चायनि ॥५८॥

नाम गाम सब राधा नेरैं ।
राधा ही के बसौं बसेरैं ॥५९॥

यौ राधा न श्याम बिन रहै ।
मेरे मन मैं राधा महै ॥६०॥

या राधा की महा अगमगति ।
प्रेम पुंज मतिवती परम रति ॥६१॥

या राधा कौ प्रेम कहै को ।
या राधा कौ नेम गहै को ॥६२॥

राधा रमन रमन हू राधा ।
एकमेक ह्वै रहे अबाधा ॥६३॥

मिलन बिछोह कछु न सुधि परैं
अचिरज रीति राधिका धरैं ॥६४॥

या राधा कौ रस अपरस है ।
रस मूरति कौ परम सरस है ॥६५॥

दोहा
कहिबो सुनिबो समझिबो राधा ही कौ होय ।
राधा के हित की कथा भूलि सुमिरिहै सोय ॥६६॥

राधा अकथ कथा कहौं, यह कहिबे की नाहिं ।
राधा के जिय की दसा प्रीतम के हिय माहिं ॥६७॥

व्रजमोहन आनंदघन, वृंदावन रसधाम ।
अभिलाषनि बरसत रहै, राधा हित अभिराम ॥६८॥

मधुर केलि रस-झेलि सों, रसना स्वाद सुरूप ।
सुफल सुवानी वेलि को, राधा नाम अनूप ॥६९॥

मेरे मन दृग रीझि की, राधा ही कों बूझि ।
राधा के मन रीझि की, मोहिं बूझि अरु सूझि ॥७०॥

राधा मेरे प्रान है, राधा प्रान गुपाल ।
साँस कंठ धारे रहौं, राधा-मोहन माल ॥७१॥

आनँदघन बरसत सदा, राधा-जीवन स्याम ।
उज्वल रस में गौरता, प्रेम अवधि अभिराम ॥७२॥

दोऊ मिलि एकै भये ललित रंगीली जोट ।
जमुना तटनि रखौं सदा तरु बेलिनि की ओट ॥७३॥

निपट लटपटे अटपटे, भरे चटपटी चोंप ।
राधा मोद पयोद रस प्रगट केलिकुल कोंप ॥७४॥

व्रज मोहन उर अवनि मैं राधा सुपद बिहार ।
रोम-रोम आनंद घन भीजे रसिक उदार ॥७५॥

राधा हित आनंदघन मुरली गरज रसाल ।
राधा हींके रस भरे मोहन मदन गुपाल ॥७६॥

राधा के आनंद कौ मनमोहक मन साखि ।
राधा को अभिलाष जो, राधा पिय अभिलाषि ॥७७॥

राधा रसिक सँजीवनी, राधा जीवन लाल ।
राधा मोहन मैं सबै ब्रजबन बेलि तमाल ॥७८॥

राधा मेरी संपदा, जिय की जीवन मूल ।
राधा राधा रट सदा रोम रोम अनुकूल ॥७९॥

राधा मोहन मुख लगी मुरली ह्वै दिन राति ।
राधा ही राधा बजै अति मोहन धुनि जाति ॥८०॥

राधा रास सिरोमनि, राधा केलि कुलीन ।
राधा सकल कलाभरी, रस मूरति हित लीन ॥८१॥

जो कछु है सो राधिका, मो कछु और न चाह ।
राधा पद पन पैज कौ, राधा हाथ निबाह ॥८२॥

राधा सब ठाँ, सब समै, रहति बहुगुनी संग ।
तान रमन गुनगान की लै बरसावति रंग ॥८३॥

राधा अचल सुहाग के ललित रँगीले गीत ।
रागनि भींजी बहुगुनी रिझवति राधामीत ॥८४॥

राधा चाहनि चाह सौं, राधा चाहनि चाह ।
राधा ही रस सिंधु मैं, राधा राधा थाहि ॥८५॥

राधा मो दृग पूतरी, भई स्याम लखि स्याम ।
राधा राधा रमन कौ, अनुपम रूप ललाम ॥८६॥

राधा पिय प्यासनि भरी, आनँदघन रसरासि ।
स्याम रँगमगी सगमगी राधा रही प्रकासि ॥८७॥

राधा राधा नाम कौ, रसनै महासवाद ।
या प्रबंध कौ नामहू पायौ प्रिया प्रसाद ॥८८॥

प्रिया प्रसाद प्रबंध कौं पाय सवादहिं लेत ।
नित हित सहित सनेह च्वै रसना इह सुख देत ॥८९॥

राधा मंगल मालती, सरस मधुव्रत श्याम ।
जमुना तट राजत सदा रसिक सँजीवनि धाम ॥९०॥

--समाप्त--