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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला"]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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नयनों के डोरे लाल-गुलाल भरे, खेली होली !
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जागी रात सेज प्रिय पति सँग रति सनेह-रँग घोली,
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दीपित दीप, कंज छवि मंजु-मंजु हँस खोली-
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                मली मुख-चुम्बन-रोली ।
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प्रिय-कर-कठिन-उरोज-परस कस कसक मसक गई चोली,
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
एक-वसन रह गई मन्द हँस अधर-दशन अनबोली-
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
                      कली-सी काँटे की तोली ।
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मधु-ऋतु-रात,मधुर अधरों की पी मधु सुध-बुध खोली,
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<div style="text-align: center;">
खुले अलक, मुँद गए पलक-दल, श्रम-सुख की हद हो ली-
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
                          बनी रति की छवि भोली ।
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</div>
  
बीती रात सुखद बातों में प्रात पवन प्रिय डोली,
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
उठी सँभाल बाल, मुख-लट,पट, दीप बुझा, हँस बोली
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
                      रही यह एक ठिठोली ।</pre>
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अपरिचित पास आओ
<!----BOX CONTENT ENDS------>
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</div><div class='boxbottom_lk'><div></div></div></div>
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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सबमें अपनेपन की माया
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अपने पन में जीवन आया
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया