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"शिशिर की रात (1) / महेन्द्र भटनागर" के अवतरणों में अंतर

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कि फैला दिग-दिगन्तों में सघन कुहरा,
सजल कण-कण कि मानों प्यार आ उतरा,<br>
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सजल कण-कण कि मानों प्यार आ उतरा,
प्रकृति-संगीत-स्वर बस गूँजता अविरल !<br><BR>
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प्रकृति-संगीत-स्वर बस गूँजता अविरल !
  
शिथिल तरु-डाल, सम्पुट फूल-पाँखुड़ियाँ,<br>
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शिथिल तरु-डाल, सम्पुट फूल-पाँखुड़ियाँ,
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रहीं चुपचाप गिर ये ओस की लड़ियाँ,
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धवल हैं सब दिशाएँ झूमती उज्वल !
  
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गगन के वक्ष पर कुछ टिमटिमाते हैं,
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सुखद प्रत्येक उर है नृत्यमय-झलमल !
  
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धरा आकाश एकाकार आलिंगन,
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फिसलता नीलवर्णी शून्य में आँचल !<br><BR>
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फिसलता नीलवर्णी शून्य में आँचल !
  
विहग तरु पर अकेला कूक देता है,<br>
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नयन प्रिय-पंथ पर प्रतिपल बिछे निर्मल !
  
सबेरा है कहाँ ? संसार सब सोया,<br>
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सबेरा है कहाँ ? संसार सब सोया,
पवन सुनसान में बहता हुआ खोया,<br>
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पवन सुनसान में बहता हुआ खोया,
अभी हैं स्वप्न के पल शेष कुछ कोमल !<br>
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अभी हैं स्वप्न के पल शेष कुछ कोमल !
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16:58, 12 जनवरी 2015 के समय का अवतरण

शिशिर-ऋतु-राज, राका-रश्मियाँ चंचल !

कि फैला दिग-दिगन्तों में सघन कुहरा,
सजल कण-कण कि मानों प्यार आ उतरा,
प्रकृति-संगीत-स्वर बस गूँजता अविरल !

शिथिल तरु-डाल, सम्पुट फूल-पाँखुड़ियाँ,
रहीं चुपचाप गिर ये ओस की लड़ियाँ,
धवल हैं सब दिशाएँ झूमती उज्वल !

गगन के वक्ष पर कुछ टिमटिमाते हैं,
सितारे जो नहीं फूले समाते हैं,
सुखद प्रत्येक उर है नृत्यमय-झलमल !

धरा आकाश एकाकार आलिंगन,
प्रणय के तार पर यौवन भरा गायन,
फिसलता नीलवर्णी शून्य में आँचल !

विहग तरु पर अकेला कूक देता है,
किसी की याद में बस हूक देता है,
नयन प्रिय-पंथ पर प्रतिपल बिछे निर्मल !

सबेरा है कहाँ ? संसार सब सोया,
पवन सुनसान में बहता हुआ खोया,
अभी हैं स्वप्न के पल शेष कुछ कोमल !