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"माँ के आँचल को / रमा द्विवेदी" के अवतरणों में अंतर

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मेरी साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं।<br>
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फूल से पंखुरी जैसे झरती रही ॥<br><br>
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मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं।
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फूल से पंखुरी जैसे झरती रही॥
  
जन्म लेते ही माँ ने दुलारा बहुत,<br>
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जन्म लेते ही माँ ने दुलारा बहुत,
अपनी ममता निछावर करती रही।<br>
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अपनी ममता निछावर करती रही।
मेरी सांसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
  
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माँ की चिन्ता की घड़ियां बढ़ती रहीं।<br>
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मेरी साँ सों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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मेरी साँ सों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
  
ब्याह-कर मैं पति के घर आ गई,<br>
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माँ की ममता सिसकियां भरती रही।<br>
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मेरी साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
  
छोड़कर माँ को,दिल के दो टुकड़े हुए,<br>
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फिर भी जीवन का दस्तूर करती रही।<br>
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मेरी साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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मेरी सांसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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एक दिन मैं भी बेटी की माँ बन गई,
अपनी ममता मैं उस पर लुटाती रही।<br>
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मेरी सांसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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ब्याह-कर दूर देश में बसती रही।<br>
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टूटकर फिर से दिल के हैं टुकड़े हुए,
मेरी ममता भी पल-पल तरसती रही।<br>
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मेरी ममता भी पल-पल तरसती रही।
मेरी साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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इक दिन माँ न रही, मैं सिसकती रही।<br>
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सब कुछ मिला पर माँ न मिली,<br>
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माँ की छबि ले मैं दिल में सिहरती रही।<br>
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फूल मुरझा के इक दिन जमीं पर गिरा,<br>
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मेरी साँसों की घड़ियां दफ़न हो रहीं।<br>
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ममता खोती रही और मिलती रही।<br>
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ममता खोती रही और मिलती रही।
मेरी साँसों की घड़ियां बिखरती रहीं॥<br><br>
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मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥
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17:46, 26 जून 2017 के समय का अवतरण

मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं।
फूल से पंखुरी जैसे झरती रही॥

जन्म लेते ही माँ ने दुलारा बहुत,
अपनी ममता निछावर करती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

वक़्त के हाथों में, मैं बड़ी हो गई,
माँ की चिन्ता की घड़ियाँ बढ़ती रहीं।
मेरी साँ सों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

ब्याह-कर मैं पति के घर आ गई,
माँ की ममता सिसकियाँ भरती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

छोड़कर माँ को,दिल के दो टुकड़े हुए,
फिर भी जीवन का दस्तूर करती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

वक़्त जाता रहा मैं तड़पती रही,
माँ के आंचल को मैं तो तरसती रही।
मेरी सांसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

एक दिन मैं भी बेटी की माँ बन गई,
अपनी ममता मैं उस पर लुटाती रही।
मेरी सांसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

देखते-देखते वह बड़ी हो गई,
ब्याह-कर दूर देश में बसती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

टूटकर फिर से दिल के हैं टुकड़े हुए,
मेरी ममता भी पल-पल तरसती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

वक़्त ढ़लता रहा, सपने मिटते रहे,
इक दिन माँ न रही, मैं सिसकती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

सब कुछ मिला पर माँ न मिली,
माँ की छबि ले मैं दिल में सिहरती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

फूल मुरझा के इक दिन जमीं पर गिरा,
मेरी साँसों की घड़ियाँ दफ़न हो रहीं।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥

जीवन का नियम यूँ ही चलता रहे,
ममता खोती रही और मिलती रही।
मेरी साँसों की घड़ियाँ बिखरती रहीं॥