भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"विदा करने निकली जब माता / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 9: | पंक्ति 9: | ||
विदा करने निकली जब माता | विदा करने निकली जब माता | ||
− | पग से लिपट रो पड़ी बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता ? | + | पग से लिपट रो पड़ी बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता? |
'हमने बचपन साथ बिताये | 'हमने बचपन साथ बिताये | ||
− | ब्याह हुआ | + | ब्याह हुआ सँग-सँग पति पाये |
− | सीता को ही | + | सीता को ही दुख दिखलाये |
− | क्यों नित नये विधाता ! | + | क्यों नित नये विधाता! |
− | 'कोमल | + | 'कोमल-चित् थे जेठ हमारे |
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे! | बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे! | ||
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे! | छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे! | ||
− | कोई तो समझाता ! | + | कोई तो समझाता! |
'तब वन में था बल स्वामी का | 'तब वन में था बल स्वामी का | ||
सिर पर था न अयश का टीका | सिर पर था न अयश का टीका | ||
अब तो छूट रहा भगिनी का | अब तो छूट रहा भगिनी का | ||
− | इस घर से ही नाता ' | + | इस घर से ही नाता' |
विदा करने निकली जब माता | विदा करने निकली जब माता | ||
− | पग से लिपट रो पड़ी बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता ? | + | पग से लिपट रो पड़ी बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता? |
− | + | ||
<poem> | <poem> |
18:24, 26 जून 2017 के समय का अवतरण
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता?
'हमने बचपन साथ बिताये
ब्याह हुआ सँग-सँग पति पाये
सीता को ही दुख दिखलाये
क्यों नित नये विधाता!
'कोमल-चित् थे जेठ हमारे
बंधु खड़े क्यों चुप्पी धारे!
छिपे कहाँ वे ऋषि मुनि सारे!
कोई तो समझाता!
'तब वन में था बल स्वामी का
सिर पर था न अयश का टीका
अब तो छूट रहा भगिनी का
इस घर से ही नाता'
विदा करने निकली जब माता
पग से लिपट रो पड़ी बहुएँ, 'न्याय यही कहलाता?