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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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<td rowspan=2>&nbsp;<font size=4>सप्ताह की कविता</font></td>
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<td>&nbsp;&nbsp;'''शीर्षक : घर से भागी हुई लड़की<br>
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&nbsp;&nbsp;'''रचनाकार:''' [[महेश चंद्र पुनेठा]]</td>
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</tr>
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</table>
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<pre style="overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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परीक्षा में फ़ेल हो जाने पर
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या माँ-बाप से लड़कर
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घर से भाग जाता है लड़का
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दुख व्यक्त करते हैं लोग
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लड़का कहीं कर लेता है
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<div style="font-size:120%; color:#a00000; text-align: center;">
दो रोटी का जुगाड़
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
या फिर कुछ दिन घूम-फिरकर
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लौट आता है अपने घर
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ख़ुशियों से भर जाता है घर
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<div style="text-align: center;">
जैसे लम्बे सूखे के बाद
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
वर्षा की बूँदों का झरना
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पतझड़ के बाद बसंत का आ जाना ।
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सौतेली माँ के उत्पीड़न से
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
या
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
शराबी बाप के आतंक से
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अपरिचित पास आओ
घर से भाग जाती है लड़की कभी
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गाँव भर में शुरू हो जाता है
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चर्चाओं का उफ़ान
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आँगन हो / गली हो / पनघट हो
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
या चाय की दुकान
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
आ ही जाती है उसके भागने की बात
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
तरह-तरह की आकाँक्षाएँ
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
संबंधों की बातें
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
जितने मुँह उतने अफ़साने
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
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दो-चार दिन में लौट आती है लड़की
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सबमें अपनेपन की माया
घर में बढ़ जाता है तनाव
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अपने पन में जीवन आया
कहीं कोई ख़ुशी नहीं
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मर क्यों नहीं गई
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</div></div>
मर ही जाती
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क्यों लौट आई यह लड़की । </pre>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया