भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"राम की कृपालुता / तुलसीदास/ पृष्ठ 1" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=तुलसीदास }} {{KKCatKavita}} Category:लम्बी रचना {{KKPageNavigation |पीछे=क…)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 6: पंक्ति 6:
 
[[Category:लम्बी रचना]]
 
[[Category:लम्बी रचना]]
 
{{KKPageNavigation
 
{{KKPageNavigation
|पीछे=कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 35
+
|पीछे=कवितावली/ तुलसीदास / पृष्ठ 34
|आगे=लक्ष्मण मूर्च्छा / तुलसीदास / पृष्ठ 2
+
|आगे=राम की कृपालुता / तुलसीदास / पृष्ठ 2
|सारणी=लक्ष्मण मूर्च्छा / तुलसीदास  
+
|सारणी=राम की कृपालुता / तुलसीदास  
 
}}
 
}}
 
<poem>
 
<poem>
  
  
'''लक्ष्मण मूर्च्छा'''  
+
'''भाग-7 उत्तर काण्ड प्रारंभ'''
  
 +
राम की कृपालुता
  
'''( छंद संख्या 52  53)'''
+
(1)  
  
(52)
+
बालि-सो बीरू बिदारि सुकंठु, थप्यो, हरषे सुर बाजने बाजे।
 +
पल में दल्यो दासरथीं दसकंधरू, लंक बिभीषनु राज बिराजे।।
  
  मानी मेघनादसों प्रचारि भिरे भारी भट,  
+
राम सुभाउ सुनें ‘तुलसी’ हुलसै अलसी हम-से गलगाजे।
आपने अपन पुरूषारथ न ढील की।।
+
कायर क्रूर कपूतनकी हद, तेउ गरीबनेवाज नेवाजे।1।
 +
 +
(2)
  
घायल लखनलालु लखि बिलखाने रामु,
+
बेद पढ़ैं बिधि, संभुसभीत पुजावन रावनसों नितु आवैं ।
  भई आस सिथिल जगन्निवास-दीलकी।।
+
दानव देव दयावने दीन दुखी दिन दूरिहि तेें सिरू नावैं।।
  
भाई को न मोहु  छोहु सीयको  न तुलसीस,
+
ऐसेउ भाग भगे दसभाल तेें जो प्रभुता कबि-कोबिद गावैं।
कहैं ‘मैं बिभीषनकी कछु न सबील की’।
+
रामके बाम भएँ तेहि बामहि बाम सबै सुख संपति लावैं।2।
 
+
लाज बाँह बोलेकी, नेवाजेकी  सँभार-सार,
+
साहेबु न रामु-से बलाइँ सीलकी।52।
+
 
+
 
+
(53)
+
 
+
कानन बासु!  छसाननु सो रिपु,
+
आननश्री ससि जीति लियो है।
+
 
+
बालि महा बलसालि दल्यो,
+
कपि पालि बिभीषनु भूपु कियो है।।
+
 
+
तीय हरी, रन बंधु पर्यो ,
+
पै भर्यो सरनागत सोच हियो है।
+
 
+
बाँह पगार उदार कृपालु
+
कहाँ रघुबीरू सो बीरू बियो है।53।
+
  
  
 
</poem>
 
</poem>

08:58, 6 मई 2011 के समय का अवतरण



भाग-7 उत्तर काण्ड प्रारंभ

 राम की कृपालुता

(1)

बालि-सो बीरू बिदारि सुकंठु, थप्यो, हरषे सुर बाजने बाजे।
पल में दल्यो दासरथीं दसकंधरू, लंक बिभीषनु राज बिराजे।।

 राम सुभाउ सुनें ‘तुलसी’ हुलसै अलसी हम-से गलगाजे।
कायर क्रूर कपूतनकी हद, तेउ गरीबनेवाज नेवाजे।1।
 
(2)

बेद पढ़ैं बिधि, संभुसभीत पुजावन रावनसों नितु आवैं ।
दानव देव दयावने दीन दुखी दिन दूरिहि तेें सिरू नावैं।।

ऐसेउ भाग भगे दसभाल तेें जो प्रभुता कबि-कोबिद गावैं।
रामके बाम भएँ तेहि बामहि बाम सबै सुख संपति लावैं।2।