भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छींक / उदय प्रकाश" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 4: | पंक्ति 4: | ||
|संग्रह= अबूतर कबूतर / उदय प्रकाश | |संग्रह= अबूतर कबूतर / उदय प्रकाश | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavita}} | |
− | + | <poem> | |
ज़िल्लेइलाही | ज़िल्लेइलाही | ||
− | |||
शहंशाह-ए-हिंदुस्तान | शहंशाह-ए-हिंदुस्तान | ||
− | |||
आफ़ताब-ए-वक़्त | आफ़ताब-ए-वक़्त | ||
− | |||
हुज़ूर-ए-आला ! | हुज़ूर-ए-आला ! | ||
− | |||
परवरदिगार | परवरदिगार | ||
− | |||
जहाँपनाह ! | जहाँपनाह ! | ||
− | |||
क्षमा कर दें मेरे पाप । | क्षमा कर दें मेरे पाप । | ||
− | |||
मगर ये सच है | मगर ये सच है | ||
− | |||
मेरी क़िस्मत के आक़ा, | मेरी क़िस्मत के आक़ा, | ||
− | |||
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे | मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे | ||
− | |||
के हक़दार, | के हक़दार, | ||
− | |||
ये बिल्कुल सच है | ये बिल्कुल सच है | ||
− | |||
कि अभी-अभी | कि अभी-अभी | ||
− | |||
आपको | आपको | ||
− | |||
बिल्कुल इंसानों जैसी | बिल्कुल इंसानों जैसी | ||
− | |||
छींक आयी । | छींक आयी । | ||
+ | </poem> |
23:43, 10 नवम्बर 2009 के समय का अवतरण
ज़िल्लेइलाही
शहंशाह-ए-हिंदुस्तान
आफ़ताब-ए-वक़्त
हुज़ूर-ए-आला !
परवरदिगार
जहाँपनाह !
क्षमा कर दें मेरे पाप ।
मगर ये सच है
मेरी क़िस्मत के आक़ा,
मेरे ख़ून और पसीने के क़तरे-क़तरे
के हक़दार,
ये बिल्कुल सच है
कि अभी-अभी
आपको
बिल्कुल इंसानों जैसी
छींक आयी ।