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<tr><td rowspan=2>[[चित्र:Lotus-48x48.png|middle]]</td>
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार</div>
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<div style="font-size:15px; font-weight:bold">सप्ताह की कविता</div>
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<div style="font-size:15px;">'''शीर्षक : इंद्रजाल  ('''रचनाकार:''' [[अनिल विभाकर]])</div>
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</table><pre style="text-align:left;overflow:auto;height:21em;background:transparent; border:none; font-size:14px">
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यह है इंद्रप्रस्थ का इंद्रजाल
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<div style="text-align: center;">
इसमें भूखी-नंगी जनता सुनहरे सपने देखती है
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रचनाकार: [[त्रिलोचन]]
और महारानी के दर्शन भर से धन्य हो जाती है ।
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ग़रीब जनता गौर से निहारती है महारानी को
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उनमें उसे सत्यहरिश्चंद्र की आत्मा नज़र आती है
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उसे लगता है वे महारानी नहीं, सत्य हरिश्चंद्र की नया अवतार हैं
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इंद्रप्रस्थ की रानी कहती है देश में भ्रष्टाचार बढ़ गया
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<div style="background: #fff; border: 1px solid #ccc; box-shadow: 0 0 10px #ccc inset; font-size: 16px; margin: 0 auto; padding: 0 20px; white-space: pre;">
करोड़पतियों की संख्या तो बढ़ी
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खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार
ग़रीबों की आबादी में भी इजाफ़ा हुआ
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अपरिचित पास आओ
रानी कहती है ग़रीबी और भ्रष्टाचार बेहद चिंता की बात
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जनता जवाब नहीं माँगती
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वह तो मंत्रमुग्ध है उनके सम्मोहन में
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ऋषियों का यह देश चाणक्य का भी है
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आँखों में सशंक जिज्ञासा
चंद्रगुप्त का भी
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मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा
सपने तो टूट ही रहे हैं
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जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं
जिस दिन टूटेगा इंद्रजाल जनता पूछेगी
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स्तम्भ शेष भय की परिभाषा
रानी जी! फिर कलमाड़ी को क्यों बचाया ?
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हिलो-मिलो फिर एक डाल के
और राजा को क्यों हटाया?
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खिलो फूल-से, मत अलगाओ
महारानी जी! थरूर पर हुई थू-थू
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फिर भी कम नही हुई मनमोहन की मुस्कान
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ये सब के सब तो आप के ही प्यादे हैं न
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राज आपका
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बिसात आपकी प्यादे आपके
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संविधान में सरकार भले ही चलती है संसद से  
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हक़ीक़त यह है कि दस जनपथ की इच्छा के बिना
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सात रेस कोर्स का पत्ता तक नहीं हिलता
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रानी जी, पूरा देश जानता है
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सबमें अपनेपन की माया
आपकी मुस्कान से ही मुस्कुराते हैं करोड़पति-अरबपति
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अपने पन में जीवन आया
आपके चहकने से आमजन हो जाता है मायूस
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</div>
दरअसल सिर्फ़ कहने को जनपथ में रहती हैं आप
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</div></div>
भले ही इस देश में आपका अपना कोई घर-बार नहीं
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हक़ीक़त में आप राजपथ की रानी हैं
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तौर-तरीके और रहन-सहन से तो यही लगता है
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आप इंद्रप्रस्थ की महारानी हैं ।
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समय आने दीजिए महारानी जी!
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भूखी-नंगी जनता करेगी आपकी करतूतों का पूरा हिसाब
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पूछेगी क्या हुआ अफ़ज़ल का, कहाँ है कसाब ? 
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पूछेगी क्या संसद से भी बड़ा है होटल ताज ?
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महारानी जी यही है आपका राज ?
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ज़रूर टूटेगा एक दिन इंद्रजाल
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और भूखी-नंगी जनता को लगेगा
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आपमें नहीं बसती है सत्य हरिश्चंद्र की आत्मा ।
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</pre></center></div>
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19:38, 7 मार्च 2015 के समय का अवतरण

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार

रचनाकार: त्रिलोचन

खुले तुम्हारे लिए हृदय के द्वार अपरिचित पास आओ

आँखों में सशंक जिज्ञासा मिक्ति कहाँ, है अभी कुहासा जहाँ खड़े हैं, पाँव जड़े हैं स्तम्भ शेष भय की परिभाषा हिलो-मिलो फिर एक डाल के खिलो फूल-से, मत अलगाओ

सबमें अपनेपन की माया अपने पन में जीवन आया