भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हरेक सवाल पे कहते हो कि यह दिल क्या है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गुलाब खंडेलवाल |संग्रह=कुछ और गुलाब / गुलाब खंड…) |
Vibhajhalani (चर्चा | योगदान) |
||
(इसी सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 8: | पंक्ति 8: | ||
हरेक सवाल पे कहते हो कि यह दिल क्या है | हरेक सवाल पे कहते हो कि यह दिल क्या है | ||
− | तुम्हीं बताओ, मेरे प्यार की | + | तुम्हीं बताओ, मेरे प्यार की मंज़िल क्या है |
हमने माना कि तुम्हारे सिवा नहीं है कोई | हमने माना कि तुम्हारे सिवा नहीं है कोई | ||
फिर ये प्याला, ये शराब, और ये महफ़िल क्या है? | फिर ये प्याला, ये शराब, और ये महफ़िल क्या है? | ||
− | + | ज़िन्दगी सच है, मिली दर्द की लज्ज़त के लिये | |
कोई यह भी तो कहे, दर्द का हासिल क्या है | कोई यह भी तो कहे, दर्द का हासिल क्या है | ||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
तार दिल के जो मिले हों तो ये मुश्किल क्या है! | तार दिल के जो मिले हों तो ये मुश्किल क्या है! | ||
− | रौंद डाली हैं पँखुरियाँ तेरी पाँवों से गुलाब! | + | रौंद डाली हैं पँखुरियाँ तेरी पाँवों से, गुलाब! |
− | उसने देखा भी न झुककर कि | + | उसने देखा भी न झुककर कि मुक़ाबिल क्या है |
<poem> | <poem> |
01:26, 9 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
हरेक सवाल पे कहते हो कि यह दिल क्या है
तुम्हीं बताओ, मेरे प्यार की मंज़िल क्या है
हमने माना कि तुम्हारे सिवा नहीं है कोई
फिर ये प्याला, ये शराब, और ये महफ़िल क्या है?
ज़िन्दगी सच है, मिली दर्द की लज्ज़त के लिये
कोई यह भी तो कहे, दर्द का हासिल क्या है
यों तो आसान नहीं प्यार की धड़कन सुनना
तार दिल के जो मिले हों तो ये मुश्किल क्या है!
रौंद डाली हैं पँखुरियाँ तेरी पाँवों से, गुलाब!
उसने देखा भी न झुककर कि मुक़ाबिल क्या है