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"हम उनको अपना बना लें, कभी वो खेल तो हो / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

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पलटता कौन है देखें लगा के मन का दाँव
 
पलटता कौन है देखें लगा के मन का दाँव
हंसी-हंसी में कभी आँसुओं का खेल तो हो  
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चलेंगे साथ न मिलकर, ये जानते हैं मगर  
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नए-पुराने में थोड़ा-सा तालमेल तो हो  
 
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झकोरे तेज हवाओं के हैं सर-आँखों पर
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गले गुलाब के नाजुक-सी एक बेल तो हो  
 
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01:37, 23 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


हम उनको अपना बना लें, कभी वो खेल तो हो
सहज है आँखों का मिलना, दिलों का मेल तो हो

पलटता कौन है देखें लगा के मन का दाँव
हँसी-हँसी में कभी आँसुओं का खेल तो हो

चलेंगे साथ न मिलकर, ये जानते हैं, मगर
नए-पुराने में थोड़ा-सा तालमेल तो हो

झकोरे तेज़ हवाओं के हैं सर-आँखों पर
गले गुलाब के नाजुक-सी एक बेल तो हो