भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
 
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है
  
तारों को देख कर ही नहीं आयी उनकी याद
+
तारों को देखकर ही नहीं आयी उनकी याद
 
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है
 
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है
  

01:33, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण


अब क्यों उदास आपकी सूरत भी हुई है
पत्थर को पिघलने की ज़रूरत भी हुई है

तारों को देखकर ही नहीं आयी उनकी याद
कुछ बात बिना कोई मुहूरत भी हुई है

मैं ज़िन्दगी को रख दूँ छिपाकर कि मेरे बाद
सुनता हूँ, उन्हें इसकी ज़रूरत भी हुई है

दुनिया की भीड़भाड़ में कुछ मैं ही गुम नहीं
गुम इसमें मेरे प्यार की मूरत भी हुई है

काँटों में रखके पूछ रहे हो गुलाब से! --
'कोई तुम्हारे जीने की सूरत भी हुई है?'