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"ज़िन्दगी में यह सवाल उठता है अक्सर, क्या करें! / गुलाब खंडेलवाल" के अवतरणों में अंतर
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बेसहारा, बेअसर, बेआस, बेपर, क्या करें! | बेसहारा, बेअसर, बेआस, बेपर, क्या करें! | ||
− | जब क़यामत में ही होगा | + | जब क़यामत में ही होगा फ़ैसला हर बात का |
तू ही बतला हम तेरे वादे को लेकर क्या करें! | तू ही बतला हम तेरे वादे को लेकर क्या करें! | ||
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हाथ डाँड़ों पर नहीं, किस्मत को कहते हैं बुरा | हाथ डाँड़ों पर नहीं, किस्मत को कहते हैं बुरा | ||
− | नाव | + | नाव ख़ुद ही डूबती जाती, समन्दर क्या करें! |
पूछनी थी जब न पूछी बात, मुरझाये गुलाब | पूछनी थी जब न पूछी बात, मुरझाये गुलाब | ||
फूल अब बरसा करें उनपर कि पत्थर, क्या करें! | फूल अब बरसा करें उनपर कि पत्थर, क्या करें! | ||
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03:05, 7 जुलाई 2011 के समय का अवतरण
ज़िन्दगी में यह सवाल उठता है अक्सर, क्या करें!
बेसहारा, बेअसर, बेआस, बेपर, क्या करें!
जब क़यामत में ही होगा फ़ैसला हर बात का
तू ही बतला हम तेरे वादे को लेकर क्या करें!
दूर मंज़िल, साथ छूटा, पाँव थककर चूर हैं
और झुकती आ रही है शाम सर पर, क्या करें!
हाथ डाँड़ों पर नहीं, किस्मत को कहते हैं बुरा
नाव ख़ुद ही डूबती जाती, समन्दर क्या करें!
पूछनी थी जब न पूछी बात, मुरझाये गुलाब
फूल अब बरसा करें उनपर कि पत्थर, क्या करें!