"चिडिया और चुरूंगुन / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
(New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन }}) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
(2 सदस्यों द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
{{KKGlobal}} | {{KKGlobal}} | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
− | |रचनाकार=हरिवंशराय | + | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन |
}} | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | छोड़ घोंसला बाहर आया, | ||
+ | देखी डालें, देखे पात, | ||
+ | और सुनी जो पत्ते हिलमिल, | ||
+ | करते हैं आपस में बात;- | ||
+ | माँ, क्या मुझको उड़ना आया? | ||
+ | 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' | ||
+ | |||
+ | डाली से डाली पर पहुँचा, | ||
+ | देखी कलियाँ, देखे फूल, | ||
+ | ऊपर उठकर फुनगी जानी, | ||
+ | नीचे झूककर जाना मूल;- | ||
+ | माँ, क्या मुझको उड़ना आया? | ||
+ | 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' | ||
+ | |||
+ | कच्चे-पक्के फल पहचाने, | ||
+ | खए और गिराए काट, | ||
+ | खने-गाने के सब साथी, | ||
+ | देख रहे हैं मेरी बाट;- | ||
+ | माँ, क्या मुझको उड़ना आया? | ||
+ | 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' | ||
+ | |||
+ | उस तरू से इस तरू पर आता, | ||
+ | जाता हूँ धरती की ओर, | ||
+ | दाना कोई कहीं पड़ा हो | ||
+ | चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर; | ||
+ | माँ, क्या मुझको उड़ना आया? | ||
+ | 'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया' | ||
+ | |||
+ | मैं नीले अज्ञात गगन की | ||
+ | सुनता हूँ अनिवार पुकार | ||
+ | कोइ अंदर से कहता है | ||
+ | उड़ जा, उड़ता जा पर मार;- | ||
+ | माँ, क्या मुझको उड़ना आया? | ||
+ | |||
+ | 'आज सुफल हैं तेरे डैने, | ||
+ | आज सुफल है तेरी काया' | ||
+ | </poem> |
14:18, 4 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण
छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात,
और सुनी जो पत्ते हिलमिल,
करते हैं आपस में बात;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
डाली से डाली पर पहुँचा,
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झूककर जाना मूल;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
कच्चे-पक्के फल पहचाने,
खए और गिराए काट,
खने-गाने के सब साथी,
देख रहे हैं मेरी बाट;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
उस तरू से इस तरू पर आता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोइ अंदर से कहता है
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
माँ, क्या मुझको उड़ना आया?
'आज सुफल हैं तेरे डैने,
आज सुफल है तेरी काया'