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"चिडिया और चुरूंगुन / हरिवंशराय बच्‍चन" के अवतरणों में अंतर

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छोड़ घोंसला बाहर आया,
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देखी डालें, देखे पात,
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और सुनी जो पत्‍ते हिलमिल,
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करते हैं आपस में बात;-
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माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
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'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
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डाली से डाली पर पहुँचा,
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देखी कलियाँ, देखे फूल,
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ऊपर उठकर फुनगी जानी,
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नीचे झूककर जाना मूल;-
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माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
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'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
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कच्‍चे-पक्‍के फल पहचाने,
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खए और गिराए काट,
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खने-गाने के सब साथी,
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देख रहे हैं मेरी बाट;-
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माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
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'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
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उस तरू से इस तरू पर आता,
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जाता हूँ धरती की ओर,
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दाना कोई कहीं पड़ा हो
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चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
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माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
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'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'
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मैं नीले अज्ञात गगन की
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सुनता हूँ अनिवार पुकार
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कोइ अंदर से कहता है
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उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
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माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
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'आज सुफल हैं तेरे डैने,
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आज सुफल है तेरी काया'
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14:18, 4 दिसम्बर 2014 के समय का अवतरण

छोड़ घोंसला बाहर आया,
देखी डालें, देखे पात,
और सुनी जो पत्‍ते हिलमिल,
करते हैं आपस में बात;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

डाली से डाली पर पहुँचा,
देखी कलियाँ, देखे फूल,
ऊपर उठकर फुनगी जानी,
नीचे झूककर जाना मूल;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

कच्‍चे-पक्‍के फल पहचाने,
खए और गिराए काट,
खने-गाने के सब साथी,
देख रहे हैं मेरी बाट;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

उस तरू से इस तरू पर आता,
जाता हूँ धरती की ओर,
दाना कोई कहीं पड़ा हो
चुन लाता हूँ ठोक-ठठोर;
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?
'नहीं, चुरूगुन, तू भरमाया'

मैं नीले अज्ञात गगन की
सुनता हूँ अनिवार पुकार
कोइ अंदर से कहता है
उड़ जा, उड़ता जा पर मार;-
माँ, क्‍या मुझको उड़ना आया?

'आज सुफल हैं तेरे डैने,
आज सुफल है तेरी काया'