भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"छवि को सदन मोद मंडित / घनानंद" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) |
|||
पंक्ति 3: | पंक्ति 3: | ||
|रचनाकार=घनानंद | |रचनाकार=घनानंद | ||
}} | }} | ||
− | + | {{KKCatKavitt}} | |
− | + | <poem> | |
− | + | छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद | |
− | छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद | + | ::तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ। |
− | ::तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ। | + | चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही |
− | चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही | + | ::मुरली अधर धरे लटकत आय हौ। |
− | ::मुरली अधर धरे लटकत आय हौ। | + | लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्याय, नेह |
− | लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्याय, नेह | + | ::भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ। |
− | ::भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ। | + | बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रान प्यारे, |
− | बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रान प्यारे, | + | ::कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ। |
− | ::कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय | + | </poem> |
10:57, 16 जनवरी 2010 के समय का अवतरण
छवि को सदन मोद मंडित बदन-चंद
तृषित चषनि लाल, कबधौ दिखाय हौ।
चटकीलौ भेष करें मटकीली भाँति सौही
मुरली अधर धरे लटकत आय हौ।
लोचन ढुराय कछु मृदु मुसिक्याय, नेह
भीनी बतियानी लड़काय बतराय हौ।
बिरह जरत जिय जानि, आनि प्रान प्यारे,
कृपानिधि, आनंद को धन बरसाय हौ।