भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"कींकर / जितेन्द्र सोनी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) (नया पृष्ठ: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=जितेन्द्र सोनी |संग्रह= }} [[Category:मूल राजस्थानी भाष…) |
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) |
||
(एक अन्य सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=जितेन्द्र सोनी | |रचनाकार=जितेन्द्र सोनी | ||
− | |संग्रह= | + | |संग्रह=थार-सप्तक-6 / ओम पुरोहित ‘कागद’ |
}} | }} | ||
− | |||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | {{KKCatRajasthaniRachna}} | ||
<Poem> | <Poem> | ||
− | |||
मांगीड़ै रै खेत | मांगीड़ै रै खेत | ||
अर नै'र बिचाळै री | अर नै'र बिचाळै री | ||
पंक्ति 33: | पंक्ति 32: | ||
उडीकतो | उडीकतो | ||
नै'र रो पाणी! | नै'र रो पाणी! | ||
− | |||
</Poem> | </Poem> |
21:51, 27 जून 2017 के समय का अवतरण
मांगीड़ै रै खेत
अर नै'र बिचाळै री
कींकर नीं जाणै
ग्लोबल वार्मिंग
आतंकवाद
अर राजनीति रा खेल।
नीं पिछाणै
ओबामा
सोनिया
मुशर्रफ।
कींकर जाणै
फगत आ बात
कै जद भरयोड़ी चालै नै'र
तो पूगज्यै
मांगीड़ै री घरवाळी
खेत मांय।
अर टाबर हुळसता तोड़ै
पातड़ी।
जद घटज्यै नै'र रो पाणी
तो टळकै मांगीड़ै री आंख
अर सूखती नै'र रै सागै
खेत होज्यै उजाड़
बच ज्याऊं म्हैं अ'कलो
उडीकतो
नै'र रो पाणी!